जाबालिपुरम्-त्रिपुरी से जबलपुर तक
June 13, 2024झाँसी जनपद की काव्य परम्परा
June 13, 2024डॉ. राधेश्याम द्विवेदी
मध्य प्रदेश की भाषा परम्परा छान्दस या वैदिक भाषा से प्रारंभ होकर शौरसेनी अपभ्रंश तक प्रायः अविच्छिन्न रूप से प्राप्त होती है। मध्य देश के सांस्कृतिक केन्द्र ग्वालियर में संस्कृत, अपभ्रंश, अरबी-फारसी और नाना प्रदेशों के देशज शब्दों के भाषा भाषियों एवं शिल्पों का सम्पर्क रहा था यही कारण है कि तोमर युगीन ग्वालियर में षट-भाषा प्रकृति की “ग्वालियरी” नाम्नी सर्व मान्य आर्य भाषा हिन्दी का रूप, परिनिष्ठित काव्य भाषा के स्वरूप में सजा और सँवरा ।
यह स्वरूप ग्वालियरी हिन्दी के पौराणिक कथाकार विष्णुदास, नारायणदास, ईश्वरदास, मानिक, मेघनाथ, एवं लौकिक आख्यान काव्य प्रणेता, चतुर्भुजदास, कुतुवन, मंझन, लखन सेन, दामोदर, एवं विष्णुपद, ध्रुपद शैली की गायकी के कलावन्त वैजूबाबरां, वख्श, तानसेन एवं सूरदास, आसकरन, मधुकरशाह बुन्देला, इन्द्रजीत सिंह – “धीरज नरिन्द्र” प्रवीणराय, गोविन्द स्वामी, हरिराम व्यास, पद रचनाकार, अपभ्रंश भाषा के आख्यान काव्य के जैन कवि रहधू, यश-कीर्ति, रचनाकार, नयचन्द्र सूरि, संस्कृत आख्यान काव्य के सृजेता- आदि के हिन्दी साहित्य में परिनिष्ठित काव्य भाषा की रचना-समष्टि में निखरा जिससे आगे चलकर सूर, तुलसी, जायसी, केशव, बिहारी, रहीम, रसखान आदि कवि एवं आख्यानकार, तोमर युगीन हिन्दी साहित्य के दाय की पृष्ठभूमि में साहित्यिक परम्परा को विशदता प्रदान कर सके। हिन्दी साहित्य एवं भाषा का यह दाय बुन्देली-ब्रज का था जिसे शिवपुरी जिले की साहित्यिक परम्परा ने अंगीकार किया।
शिवपुरी जिले की साहित्यिक परंपरा समकालीन राज्य सत्ताओं के काल में हुए साहित्यिक-सृजन की परम्परा में ही रही है। यह चन्देलों का राज्य रहा हो या परिहारों का, परमारों का बुन्देलों का या कच्छपघातों या सुलतानों, पठानों या मुगलों का शासन् रहा हो या ब्रिटिश भारत की हकूमत रही हो, राजनीतिक सत्ताओं की सीमायें भी कुछ सम्पूर्ण प्रदेशों की नदियों जमुना से नर्मदा, चम्बल, तमसा, केन, धसान, बेतवा, सिन्धु, मधुमती, पारा, लवणा आदि नदियों के क्षेत्रों को स्पर्श करती रहीं। इस दृष्टि से जेजाक भुक्ति-जिझौति के इस प्रदेश में संस्कृति और साहित्यिक परम्परा में नागवंश की राजधानी पद्मावती, कान्तिपुरी एवं मथुरा का मिलाजुला प्रभाव रहा है।
लोकगीत, कवित्त, दोहा, आल्हा, रासो आदि से यात्रा पिंगल, डिंगल छंदों से होती हुई अतुकान्त छन्दों तक पहुंच गई। प्रबन्ध काव्य, खण्डकाव्य, मुक्तक छन्द, गजल गीत जिला शिवपुरी के क्षेत्र में रचे गए और उपन्यास, एकांकी, निबंध, लेखादि, ऐतिहासिक, पौराणिक एवं सांस्कृतिक लिखे गए। आध्यात्मिक भक्तिभावना से पूर्ण ग्रन्थ भी रचे गए। शोधकार्य हुए। इन सब का वृत्तांत, और शिवपुरी जिले के प्रमुख चिन्तकों, विचारकों, लेखकों, कवियों, प्रेरकों की एवं उनकी रचनाओं की सूची इस लघु कलेवर में देना संभव नहीं है।
यहाँ के जन्में लेखक कवियों के अतिरिक्त वर्तमान में इस क्षेत्र में दशकों से रह रहे और स्थायी रूप में बस गए लेखक कवियों, शायरों, गीतकारों, ने भी इस क्षेत्र की साहित्यिक परम्परा को गौरवान्वित किया है। बज्में उर्दू अदब ने फारसी उर्दू हिन्दुस्तानी भाषा की लोच और रबानगी कायम रखी है तथा रविवासरीय गोष्ठियों, शामे गजल, विभिन्न संस्थाओं के नाम से नवोदित कलाकारों ने साहित्य की अनेक विधाओं को पोषित किया है। तुलसीदास जी ने कहा है “उपजहि अनत, अनत छवि लहहीं” इसको चरितार्थ करते हुए –
श्री रामकुमार चतुर्वेदी चंचल जन्म स्थान मुंगावली जिला गुना, (जन्म तिथि 8 अक्टूबर 1926) एम.ए. हिन्दी ने सन् 1942 से काव्य सृजन एवं 1945 से कवि सम्मेलनों में भाग लेना प्रारंभ किया। प्रकाशित काव्यों में खून की होली, प्रथम चरण, हिन्दुस्तान की आग, धूल का परिचय, घटा के घुंघरू, नई पीढ़ी, नई राहें, मौसम नहीं हैं, और आठवीं “सर्व श्रेष्ठ कृति” उत्तर नहीं मिला (1994 प्रथम संस्करण) है। काव्य पुरस्कृत भी हुए और राष्ट्रपति भवन दिल्ली में काव्य पाठ 1959 में और उसके बाद भी किया, विश्वविद्यालय ग्वालियर एवं विक्रम वि. वि. से हिन्दी बोर्ड आफ स्टडीज के चेअरमैन रहे। प्राचार्य पद से 1986 में रिटायर हुए। अपने जीवन की अनुभूतियों को समष्टिगत पाकर नदी के रूपक में बड़ा करुण स्वर दिया है। यह कविता कवि के छटपटाते हृदय ने अर्द्ध रात्रि के पश्चात् अनिद्रा में व्यथित हृदय से लिखी और अभिव्यक्ति के पश्चात् न केवल स्वयं के जख्मों में लेपन किया बल्कि अनेक लेखक कवियों की समान दर्द भरी अनुभूतियों में राहत के स्वर दिये-
नदी! तू भरपूर या सूखी रही है, मुझे लगता है कि तू मुझ में बही है
एक पर्वत था, जहाँ उदगम हुआ था। एक सागर है जहाँ संगम बनेगा।
सैकड़ों उत्थान- पतनों की कहानी, काल ही शायद सुनेगा या गुनेगा ।।
राह पाने को भटकना और बहना, जिन्दगी की भी यही गाथा रही है ।।
डॉ. परशुराम शुक्ल बिरही का जन्म तालबेहट (उ.प्र.) फाल्गुन, पूर्णिमा सम्बत् 1985 (सन् 1928 ई.) में हुआ और 1961 में “आधुनिक हिन्दी काव्य में यथार्थवाद” विषय पर आगरा वि. वि. से पी-एच. डी. उपाधि मिली, म.प्र. शासन् के कालेज में 1962 से आगरा और शिवपुरी निवासी बन गए। 1945 में शुक्ल जी की प्रथम कविता पुरस्कृत हुई तभी से लेखन जारी है। देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लेख कविताएँ प्रकाशित हुई । काव्य संग्रह, आलोचना, सम्पादित ग्रंथ के प्रकाशनों में साहित्य साधना मुखरित है। आज कल क्रान्तिदूत-काव्य रचना पर कार्यरत हैं।
डॉ. ध्यानचन्द्र चौधरी तथा डॉ. राजेन्द्र नाथ दीगरा ने उर्दू अदब की एवं गोष्ठियों के माध्यम से हिन्दी साहित्य पर चर्चाएं आयोजित कर सेवा कार्य को अपनाया है जिसमें सन् 1965 में कमल “शबनम” ने भाग लिया तथा आजकल श्री सफदर मालवी नजर सा., पीर सा., आतिश बुलन्दशहरी आदि भाग ले रहे हैं। कर्नल जी. एस. ढिल्लन आजाद हिन्द फौज के अधिकारी भी यहीं बस गए हैं उनकी “सिपाही” रचना के स्वर मुर्दे में जान फूँकते हैं। स्व. खावर सा., स्व. डालडा सा. ने गजल को बहार दी। गीतकार अब गजलों को ज्यादा अपना रहे हैं जिनमें महेन्द्र माथुर, दिनेश वशिष्ठ, रामचरन लाल दण्डौतिया, मुरारी लाल मधुर विरमानी, गोविन्द” अनुज” आदि रचनाकार हैं। श्री राजेश श्रीवास्तव भी हैं। प्रो. विद्यानंदन “राजीव” की कृतियों में “छजता आकाश बहुत सुन्दर है।
श्री हरि उपमन्यु कलाकार राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अध्यापक ने “रत्ना” खण्डकाव्य की रचना की है। श्री रवीन्द्र पाठक रन्नौद स्व. श्री लाल “भानु”, घनश्याम पाठक (कोलारस), घनश्याम योगी, लैला, एवं श्रीवास्तव आदि करेरा, स्व. मुकुन्द लाल दुबे, प्रो. वी.एन. सिंह समालोचक एवं प्राचार्य रामनाथ नीखरा (पिछोर) की कृतियां मस्तानी वेश्या ऐतिहासिक उपन्यास, गीत, लेखन हिन्दी साहित्य की श्री वृद्धि कर रहे हैं। श्री हरिश्चन्द भार्गव, चुन्नी लाल सलूजा, नेमिचंद (गोंद वाले) कवि एवं पत्रकार, हरिबल्लभ शर्मा, विकासखंड शिक्षा अधिकारी एवं श्री चन्द्रपाल सिंह भदौरिया आदि लेखक, कवि, कहानीकार, हिन्दी साहित्य की सेवा कर रहे हैं। उदीयमान लेखक एवं कवि भी, कवयित्री भी अनेक हैं जिनमें से सुश्री कृष्णा अवस्थी हैं। म.प्र. तरुणोदय साहित्य सभा द्वारा भारती पुस्तक सदन के सौजन्य से अमर शहीद तात्या टोपे पर सरल जी की रचना प्रकाशित हुई है।
स्व. मदन मोहन शर्मा “शाही” का “लंकेश्वर” उपन्यास एक मौलिक अद्भुत शोधपूर्ण कृति है, इनके अनुज प्रमोद भार्गव, लेखक कवि एवं पत्रकार, प्रकाशक हैं और इनके उपन्यासों में लेखों में पुरातत्व वन वैभव, प्राकृतिक छटा, पर्यावरण, पिछड़ी एवं दलित गरीब वर्गों के प्रति सक्रिय सहानुभूति दिखाई देती है। श्री हरिशंकर शर्मा पत्रकार ने शिवपुरी के इतिहास, पुरातत्व एवं सांस्कृतिक वैभव पर अनेकों अंक प्रकाशित किए और कवि सम्मेलनों का आयोजन किया है। रत” अधीर असाम्प्रदायिक राष्ट्रीय चेतना के प्रति सतर्कता से कार्यरत हैं। ये रणजीत कपूर के साथ हिन्दी साहित्य सभा उसके पश्चात् वर्तमान संस्था “निशा निमंत्रण” को स्वयं सजीव रक्खे हैं जिसमें चंचल जी, बच्चन जी, विठ्ठल भाई पटेल, डॉ. माथुर को आयोजनों में बुलाया गया है।
तहसील करेरा के अन्तर्गत दिनारा में 27 मई 1911 ई. में जन्में पं. हरिहर निवास द्विवेदी के प्रति एक स्वतंत्र लेख ही लिखा गया है। इन्होंने आजीवन इतिहास, पुरातत्व, चित्रकला, साहित्य, भाषा आदि पर शोध पूर्ण रचनाएँ प्रकाशित की। विविध आख्यान काव्यग्रन्थों के संपादन किए। विधि के क्षेत्र में हिन्दी सेवा की दृष्टि से मानक समीक्षाएं प्रस्तुत कीं। इनके ग्रंथों में विष्णुदास कृत रचनाएँ, नारायणदास कृत छिताईचरित, महाभारत पाण्डव चरित, साधन कृत मैनासत, मानसिंह मान कुतूहल, (संगीत ग्रन्थ) महात्मा कबीर, मध्य भारत का इतिहास, त्रिपुरी (पुरातत्व) एवं अपराध सम्बन्धी विधि दण्ड प्रक्रिया संहिता, भू-राजस्व संहिता, आदि विविध विधि के मानक ग्रन्थ पुरस्कृत हुए हैं एवं महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में अध्ययन के लिए स्वीकृत हुए हैं। इनके अनुज डॉ. मधुसूदन द्विवेदी उदय द्विवेदी, बुन्देली लोक गीतों के रचनाकार एवं संकलनकर्ता हैं।
स्व. विजयगोविन्द द्विवेदी विद्वान लेखक विचारक रहे। बाबा जी यशस्वी शांतिचंद, विचारक लेखक, सम्पादक एवं पत्रकार हैं और उस मशाल को थामें है। इसी द्विवेदी कल्ट का झण्डा उठाए प्रस्तुत होकर सृजनशील हैं। अनेक भूले बिसरे कथाकारों, निबंधकारों, लेखकों, कवियों, उपन्यासकारों, एकांकी, नाटककारों गजल गीतकारों के प्रति सादर श्रद्धा व्यक्त करता हुआ, शिवपुरी जिले को साहित्यिक परम्परा में उनकी भागीदारी स्मरण करके कृतज्ञता ज्ञापन करता हूँ।