झाँसी जनपद की काव्य परम्परा
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June 14, 2024श्री कृष्णानंद हुंडैत
अन्य सभी हिन्दी क्षेत्रों की भांति इस जनपद में भी संतों, विचारकों, कवियों, भक्तों एवं साहित्यकारों को भावाभिव्यक्ति का माध्यम हिन्दी भाषा रही है। जनश्रुतियों के आधार पर इस जनपद के कतिपय मनीषी एवं विद्वानों की यह मान्यता है कि परमर्दिदेव परमाल के राजकवि एवं परमाल रासों मूल आल्हा खण्ड के रचयिता जगनिक का जन्म स्थान इस जनपद में स्थित मदनपुर ग्राम था। आज यह जगनिक रचित आल्हा खण्ड समस्त हिन्दी भाषी क्षेत्र में न केवल ख्यात वरन् सामान्य जन द्वारा गाया जाता है। अजस्र रूपेण गाये जाने के कारण न केवल इसकी भाषा परिवर्तित हो गयी है, वरन् भाव एवं घटनाओं के विचार से भी इसमें बहुत अधिक प्रक्षिप्त अंश सम्मिलित हो गये हैं।
यथार्थतः चंदेल शक्ति के मुस्लिम शासकों द्वारा दमन किए जाने के फलस्वरूप न केवल इस जनपद के वरन् समस्त बुंदेलखण्ड के वे सूत्र नष्ट हो गये हैं, जिनका अवलम्ब ग्रहण कर तत्कालीन एवं परवर्ती कवि एवं रचनाकारों का अन्वेषण किया जाना सम्भव होता ।
भक्तमाल में ग्राम खजुरिया में जन्मे स्वामी अग्रदास का पता चलता है, अग्रदास ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि थे, उन्होंने अपनी वाणियों की रचना की थी, उनका जन्मकाल सम्वत् 1594-1650 अनुमाना जाता है।
ओरछा नरेश महाराज रामशाह जिन्हें ओरछा के बदले चंदेरी क्षेत्र का राज्य दे दिया गया था, के दरबार ओरछा में महाकवि केशवदास रहे तथा उनके चंदेरी आ जाने पर राजकवि के रूप में किन्हीं कृष्ण दास का पता चलता है। इनके द्वारा रचित एक प्रबंध काव्य “कृष्ण चंद्रिका” का पता चलता है। यह कृष्ण काव्य कुछ समय पूर्व चंदेरी में उपलब्ध था। स्व. पं. गौरीशंकर द्विवेदी “शंकर” ने अपने बुन्देल वैभव के सम्बन्ध में लगभग 50-55 वर्ष पूर्व हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का संकलन किया, तब से इसे प्राप्त करके अपने साथ ले गये, उनकी संतान में से कोई भी उनके द्वारा संकलित पुस्तकों को किसी को बताना नहीं चाहता।
ललितपुर नगर में जन्मे कारे कवि जो जाति के मुसलमान थे, भक्त कवियों में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। भक्ति सम्बन्धी इनके कुछ छन्द विभिन्न व्यक्तियों के पास मिलते हैं। इन पंक्तियों के लेखक के पास भी उनके कुछ छन्दों का संकलन है। इनके छन्दों में से अधिकांश की भाषा फारसी गर्भित हिन्दी है। शेष छन्दों की रचना ब्रजभाषा प्रभावित बुन्देली में है।
चंदेरी के सुप्रसिद्ध शासक महाराज देवीसिंह जूदेव अधिकांशतः तालबेहट में रहा करते थे, वे स्वयं अच्छे कवि, विद्वान और विद्वानों के आश्रय दाता थे। इनके प्रशासनिक कार्यों से सम्बन्धित कुछ आदेश, परवाने, इत्यादि बुंदेली गद्य में लिखे गये, उपलब्ध हैं।
ललितपुर निवासी सरदार कवि का जन्म सम्वत् 1824 विक्रम एवं मृत्यु सम्वत 1880 विक्रम में हुई, बतायी जाती है। वे अपने पितामह एवं पिता श्री की परम्परा से काव्य शास्त्र के श्रेष्ठ ज्ञाता एवं सिद्धहस्त कवि थे। ये ललितपुर से महाराजा रामनगर बनारस के अनुरोध पर बनारस चले गये थे। रामनगर नरेश की इच्छानुसार इन्होंने महाकवि केशवदास विरचित “रामचंद्रिका” की पद्यात्मक टीका की रचना की। इनके द्वारा बिहारी “सतसई” के कुछ दोहों पर भी पद्यात्मक टीका का रचा जाना बतलाया जाता है।
ललितपुर नगर के ही किन्हीं नारायण कवि ने सम्वत् 1934 विक्रम से सम्वत 1842 विक्रम के बीच “षडऋतु वर्णन” एवं “नायिका भेद” पर दो ग्रन्थों का प्रणयन किया था।
पं. अड़कू लाल जी वैद्य का जन्म स्थान जाखलौन था, वे ननौरा के जागीरदार के मुख्तार तथा स्वयं एक जमीदार थे। अपने दोहित्रों के भरण-पोषण की व्यवस्था के विचार से वे ललितपुर में आकर रहने लगे थे। इनके द्वारा एक ग्रन्थ “पारिजात रामायण की रचना की गयी थी। इनके दौहित्र स्व. पं. मालवाचार्य तिवारी के अनुसार उक्त रचना पं. गौरीशंकर द्विवेदी, शंकर अपने संकलन बुंदेल वैभव के पूर्ण करने के विचार से ले गये थे। जो फिर वापिस नहीं हुई।
इन्हीं के समकालीन पं. वनमाली व्यास का जन्म स्थान तालबेहट था। इनके द्वारा “श्रीमद् भगवत गीता का पद्यात्मक अनुवाद किया गया।
लगभग उसी समय के तालबेहट निवासी पं. भवानीप्रसाद व्यास ने श्री मद् भागवत” के दसवें स्कंध का पद्यात्मक अनुवाद किया था।
पं. काशीनाथ तिवारी का जन्म स्थान मालथौन जिला सागर था। वह ललितपुर में आकर रहने लगे, उन्होंने गद्य पद्यात्मक रामलीला ग्रन्थ की मौलिक रचना की थी। उनका यह रामलीला ग्रन्थ मंच के दृष्टिकोण से पूर्णतः उपयुक्त है। वे स्वाभाविक रूप से बहुत कर्मठ एवं लग्नशील व्यक्ति थे। उन्होंने बृजभाषा में अनेक स्फुट छन्दों की रचना की।
ललितपुर नगर में श्री बिहारी निवास मंदिर के संस्थापक श्वी कुंजबिहारी जी महाराज का सत्संग करने वाले महानुभाव पर्याप्त संख्या में लगभग 44 वर्ष पूर्व थे। श्री कुंजबिहारी जी महाराज ने श्री कृष्ण भक्ति से संबंधित “बिहारी प्रेम चर्चा” नामक स्फुट छन्दों को लिपि बद्धित किया, सभी छन्द पूर्णतः मौलिक हैं। उनमें साधना की फक्कड़ता स्पष्ट परिलक्षित होती है। महाराज जी का निर्देश था कि उनकी किसी रचना को मुद्रित न कराया जाय । सम्वत 1981-82 के लगभग श्री कुंजबिहारी जी महाराज श्री कृष्ण की नित्यलीला में लीन हो गये।
श्री मुन्ना लाल जी खत्री “मुन्ना” तालबेहट निवासी थे। यह एक राष्ट्रीय विचारों के कर्मठ व्यक्ति थे। इनकी रचनायें देश भक्ति पूर्ण एवं राष्ट्रीय विचार धारा से सम्पृक्त हैं। कुछ समय पूर्व इनकी अनेक रचनाएँ लोगों को कंठस्थ थी।
तालबेहट निवासी पं. गोविन्द दास व्यास “विनीत” गद्य और पद्य दोनों विधाओं में सफल रचनाकार रहे। इन्होंने 25 से अधिक पुस्तकों का प्रणयन किया, आप न केवल सिद्धहस्त कवि वरन् नाटककार, गद्य लेखक एवं अभिनेता थे।
पं. गौरी शंकर द्विवेदी “शंकर” का जन्म स्थान तालबेहट है। अपनी राजकीय सेवाओं के कारण उन्हें सुदीर्घ काल तक टीकमगढ़, ललितपुर एवं झाँसी रहना पड़ा। अवकाश प्राप्त होने के कारण आप स्थाई रूप से झाँसी में निवास करने लगे। आपने बुंदेलखण्ड के कवियों, साहित्यकारों एवं उनकी कृतियों की खोज एवं शोध के लिए अति स्मरणीय श्रम किया, आपकी प्रकाशित पुस्तक बुंदेलखण्ड वैभव बुन्देलखण्ड के पूर्ववर्ती कवियों का अच्छा संकलन है। लगभग 7-8 वर्ष पूर्व आप नन्दीश्वर की कृपा से कैलाशवासी हो गये ।
श्री गौरीशंकर खत्री तालबेहट के निवासी थे। आप कवि गोष्ठियों में प्रस्तुत समस्याओं की तुरंत पूर्ति करते थे।
श्री कुंदन लाल जी “भैरव” का जन्म स्थान तालबेहट था, किन्तु आजीविका के सिलसिले में झाँसी रहने लगे थे। श्री राम और श्री कृष्ण की भक्ति के संबंध में आपकी अनेक रचनायें हैं।
श्री दामोदर दास जी खत्री जिला परिषद झाँसी में अध्यापक पद पर कार्यरत थे। आप अच्छे लेखक एवं कवि थे। हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू पर आपका पूर्ण अधिकार था। इनका जन्म स्थान तालबेहट था। वहीं इनका परिवार रह रहा है।
पं. जगन्नाथ प्रसाद जी तिवारी ललितपुर के एक संभ्रांत परिवार में आपका जन्म हुआ था। आप न केवल सफल कवि वरन सिद्धहस्त नाटककार थे। रंगमंचीय निर्देशन में दक्ष थे। आपने स्फुट काव्य छन्दों के अतिरिक्त अनेक नाटकों का प्रणयन किया, आपके नाटकों का मंचन इन्हीं के निर्देशन में श्री रामयश कीर्तन रामलीला नाटक मण्डली द्वारा किया जाता था। आपके नाटकों में “पन्ना धाय” की विशेष ख्याति हुई।
तालबेहट निवासी श्री अयोध्या प्रसाद जी “प्रसाद” जन कवियों में से थे। आपने राष्ट्रीय चेतना पूर्ण किसान पच्चीसी नामक पुस्तक लिखी।
डॉ. बसंत लाल मिश्रा का जन्म स्थान तालबेहट था। चिकित्सा कार्य करते थे, आजीवन राष्ट्रीय गतिविधियों में व्यस्त रहे, आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हैं।
पं. बनवारी लाल त्रिपाठी तालबेहट के भूतपूर्व जमींदार थे। सफल कवि होने के साथ-साथ संगीत शास्त्र के मर्मज्ञ थे। आपके लेख भावनात्मक एवं हृदयस्पर्शी होते थे, रचनाओं में संगीत की लय, ध्वनि एवं तालों का पूर्ण ध्यान रहता था।
श्री मनीराम कंचन तालबेहट के समृद्ध एवं संभ्रान्त परिवार में जन्म लेकर आजीवन राष्ट्रीय गतिविधियों में व्यस्त रह कर भी सतत् साहित्य सेवारत रहे, आप सफल प्रगतिशील कवि एवं लेखक थे।
श्री रमानाथ खैरा पाली में सम्पन्न गहोई वैश्य परिवार में जन्में एवं सफल विधिज्ञाता एवं वकील होकर भी आप राजनीति में व्यस्त रहे। दो बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गये, आप दार्शनिक दृष्टि से परिपक्व विचारवान सफल लेखक हैं। आपके लिखे हुए “श्रीराम चरितम्” की बहुत अधिक प्रसंशा विद्वद्जनों द्वारा की गयी है। श्री श्रवण कुमार त्रिपाठी तालबेहट में जन्म लेकर रेलवे में सेवा करते हुए भी निरंतर साहित्य सेवा में संलग्न रहे। सेवा निवृत्त होने के उपरांत तालबेहट में निवास कर रहे हैं। सफल ऐतिहासिक उपन्यासकार हैं।
आचार्य श्री रामस्वरूप योगी शास्त्री “अमर” संस्कृत व्याकरण एवं साहित्य के विद्वान मनीषी हैं। श्री अमर जी को हिन्दी एवं संस्कृत की सफल साहित्य सेवा में स्वर्णपदक भी प्राप्त हो चुका है। आपके द्वारा संस्कृत एवं हिन्दी में अनेक पुस्तकों का प्रणयन हुआ है। सरस साहित्य संगम की ओर से आपका समारोह पूर्वक नागरिक अभिनन्दन किया जा चुका है। आप न केवल साहित्य साधनारत हैं, वरन् अनेक लेखकों एवं कवियों को दिशा निर्देश देते रहते हैं। आप वाणी विचारक एवं निर्भीक वक्ता हैं। श्री द्वारिका प्रसाद वर्मा का जन्म स्थान जालौन जनपद है। अपनी छात्रावस्था से ही आप काव्योन्मुख रहे हैं। ललितपुर जनपद में आप राजकीय सेवारत रहकर साहित्य-सेवा में निरंतर रत चले आ रहे हैं। ललितपुर में वर्ष 1978 में आयोजित प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सफल आयोजन में आपकी प्रमुख भूमिका रही । भावप्रवणता पूर्ण छन्दों मूलतः काव्यात्मक अभिव्यक्तियों के प्रस्तुतीकरण में आपको दक्षता प्राप्त है।
श्री नारायण दास हयारण “नरेन्द्र” झाँसी के कवीन्द्र श्री नाथूराम जी माहौर की शिष्यता में रहकर आरम्भ से ही आप काव्य साधना रत रहे। रीतिकालीन काव्य शैली के आप सफल काव्यकार हैं। श्री रामनारायण श्रीवास्तव “श्याम” जी सलिल व्यक्तित्व के धनी हैं। आपका जन्म स्थान ग्राम बछरई जिला ललितपुर है। बाल्यकाल से ही आप ग्राम कृषक जीवन से संलग्न रहे तथा उसका सूक्ष्मता से अध्ययन किया फलतः आपकी बुंदेली भाषा के माध्यम से प्रस्तुत रचनाओं में बुंदेलखण्डीय ग्राम्यजीवन का यथार्थ चित्रण सहज रूपेण काव्य श्रोताओं को भाव विभोर कर देता है। भक्ति पूर्ण भावुक हृदय होने कारण आपकी रचनाओं में सरस भक्ति प्रवाह अवगाहनीय है।
श्री लाल चंद जैन “जलज” जी अपने उपनाम के अनुरूप ही संकोच शील मनोवृत्ति प्रधान व्यक्ति हैं। आप सफल कवि लेखक एवं वक्ता हैं। आप की रचनाएँ सरस एवं भावात्मक होती हैं। सामान्य भावपूर्ण रचनाओं के अतिरिक्त जैन मत संबंधी भक्तिपूर्ण सुललित रचनाएँ हृदयग्राही हैं। आप गद्य लेखन में भी सिद्धहस्त हैं। सम्प्रति वर्णी जैन इण्टर कालेज में प्रवक्ता हैं। श्री शिखर चन्द्र जैन “मुफलिस” जनपद में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं। कवि सम्मेलन के मंच पर आपकी रचनाएँ श्रोताओं द्वारा सहज ही सराही जाती हैं। सम्प्रति सा. जनप्रिय के सम्पादन विभाग में आप अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। श्री रामस्वरूप चौबे ललितपुर जनपद में ग्राम पिपरा में सुप्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में आपका जन्म हुआ बुन्देली में काव्य रचना में सिद्ध हस्त हैं। अनेक बुंदेली-काव्य-रचनाएँ जन-सामान्य द्वारा सराही गयी है। “लेलिन” नामक महाकाव्य आपने लिखना आरम्भ किया था, दुर्भाग्यवश आप लकवा से आक्रांत हो गये, तथा वह कार्य इस समय तो अपूर्ण ही है। नगर पालिका ललितपुर में आप कार्यालय अधीक्षक के पद पर कार्य कर रहे हैं।
श्री रमेश चौबे इतिहास-विद् विद्वान एवं सफल लेखक और वक्ता है।
श्री कन्हैया लाल शास्त्री “मुकुल” श्री रामस्वरूप शास्त्री “अमर” के शिष्य श्री “मुकुल” विद्वान कवि एवं लेखक हैं, सरस साहित्य संगम जनपद ललितपुर के संचालन में आपका विशेष हाथ है।
पं. देवकीनन्दन जी चौबे ललितपुर जनपद के पार नामक माम में सन् 1915 में जन्मे, छात्रावस्था से साहित्य एवं काव्य रचना से सम्बद्ध हो गये थे। अपनी किशोरावस्था में ही अपने पितृव्य की मृत्यु के पश्चात् आप ललितपुर के सुप्रसिद्ध श्री जगदीश जगन्नाथ जी के मंदिर में पुजारी का कार्य करने लगे थे। गत वर्ष 1993 ई में आप बैकुण्ठ वासी हो गये । पदों, छन्दों, तथा गजलों में आपने अनेक भक्ति पूर्ण रचनाओं का प्रणयन किया। आपकी भाषा सर्व अनीम एवं सामान्य व्यवहार में आने वाले उर्दू शब्दों में समायोजित है।
उपर्युक्त महानुभावों के अतिरिक्त अनेक नवयुवक साहित्य साधनारत हैं।