चंदेल कालीन जल संरचनाएँ
January 25, 2025गोंड कालीन जल संरचनाएँ
January 25, 2025बुन्देलखंड में चंदेलों की सत्ता के पराभव के साथ ही बुन्देला क्षत्रियों की नवीन सत्ता का प्रादुर्भाव हुआ। बुंदेला शासकों ने अपने पूर्ववर्ती शासकों की नीति का अनुसरण करते हुये नवीन कूप, वापी एवं सरोवरों के निर्माण की परंपरा को अक्षुण्ण बनाये रखा।
बुंदेलखंड की पैरेन्ट स्टेट ओरछा स्टेट रही है। इसी के फुटान से बुंदेलखंड में अनेक बुंदेला राज्यों की स्थापना हुई। कुछ जागीरदारों ने अवसर पाकर अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। कुछ गैर बुंदेला राज्य भी स्थापित हो गये। इस प्रकार बुंदेलखंड में अनेक छोटे-बड़े राज्य अस्तित्व में आ गये।
ओरछा राज्य के संस्थापक रुद्र प्रताप (प्रताप रुद्रदेव) का शिलालेख कालंजर दुर्ग में ‘कोटितीर्थ’ नामक सरोवर के पूर्वोत्तर कोण में स्थित ‘पथर महला मसजिद’ के भीतरी भाग : मेम्बर (अँग्रेजी पुलपिट) के नीचे एक सँकरे मार्ग की पूर्वी दीवार में चुना हुआ है। 24 पंक्तियों का यह अभिलेख उत्तर मध्यकालीन नागरी लिपि में सुंदर अक्षरों में उत्कीर्ण है।
शिलालेख के श्लोक 14 में द्रोणपाल द्वारा कालिंजर में देवालयों का अभ्युदय तथा ‘श्री खण्डेत’ नामक स्थान पर ‘द्रोणसागर’ नामक सरोवर के निर्माण से उसके यश में नित्य नववृद्धि का उल्लेख है। (भारतीय इतिहास के कुछ पहलू, डॉ. भगवानदास गुप्त स्मृति ग्रंथ)
दोण सागर की पहचान कालन्जर दुर्ग से बाहर स्थित ‘गंगा सागर’ से करना संभव है। श्लोक निम्नलिखित अनुसार है –
‘अधिकालञ्जर यस्य द्रोण देवालयो दयम्।
श्री खण्डेतु नवं नित्यं द्रोण सागरज यशः।‘
ओरछेश वीरसिंह जूदेव ‘प्रथम’ (1605-27 ई.) ने चंदेलों द्वारा वृहद स्तर पर स्थापित तालाब निर्माण की परम्परा को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने नाम पर ‘वीरसागर’ वीरगढ़ (जिसे वर्तमान समय में तालाब के नाम से वीरसागर के रूप में जाना जाता है) में, ‘सिंहसागर’ कुंडार में (जिसे सिंदूर सागर भी कहा जाता है) और देवसागर दिनारा में निर्मित करवाये। एक और सबसे विशाल सरोवर ‘सिंधु सागर’ का निर्माण नदनवारा में कराया। जो टीकमगढ़ जिले का सबसे बड़ा तालाब है। यथा –
“Bir Sagar – The village lying at the northern end of a magnificent lake, three miles long, by one and half mile broad. It was constructed by Birsingh Dev.’ (Captain C. F. Laurd – Eestern states (Bundelkhand) Gazetters, Page 73)
Kundar – There is a large tank called Singh Sagar also built by Maharaja Bir Singh Dev.’ (वही, पृ. 78)
‘Dinara – It has a picturesque tank said to have been built by raja Bir Singh Dev of Orchha. The tank irriagates about 1,517 acres land.’ (Dr. N. P. Pandey – Shivpuri District Gazetter, Page 358)
‘समुद्र (सिंधु) सागर नदनवारा में है, जो बुन्देला स्थापत्य का आदर्श है। जिसका निर्माण वीरसिंह देव प्रथम (1605-27 ई.) ने कराया था।’ (बुन्देलखंड का वृहद इतिहास, पृ. 44) ‘ओरछेश होने से पूर्व बड़ौनी के जागीरदार के रूप में उन्होंने बड़ौनी में भी एक तालाब का निर्माण कराया था।’ (बुंदेलखंड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास, पृ. 116) ‘कुडार में गंज सागर’ का निर्माण कराया। (बुंदेलखंड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास, पृ. 50
‘ओरछेश रामशाह के कार्यकारी इंद्रजीत सिंह ने अपनी प्रेयसी राय प्रवीण के नाम पर अपनी जागीर कछौआ के ग्राम बरदुआ में ‘प्रवीण सागर’ का निर्माण कराया था, जो अच्छी स्थिति में हैं। ‘राजा वीरसिंह देव ने अपने राज्य में बावन तालाब बनवाये थे।’ ‘समन्दर सागर जिसका घेरा बीस कोस है, परगना मथुरा में है।’
‘ओरछेश सुजान सिंह (1653-72) ने अड़जार (वर्तमान जिला झाँसी) में सुजान सागर तालाब का निर्माण कराया। तालाब के बाँध पर चार शिलालेख विद्यमान हैं।’ (बुंदेलखंड के शिलालेख, पृष्ठ 2-3)
ओरछेश उदोत सिंह (1689-1736 ई.) ने बरुआसागर (वर्तमान जिला झाँसी) में उदोत सागर का निर्माण कराया। ‘उदोत सिंह ने बरुआसागर तालाब और किला बनवाया। इस तालाब का नाम उदोत सागर रखा गया। .. 25 वर्ष की लंबी अवधि तक बनने वाले तालाब को बड़ी सुरुचि पूर्ण तरीके से बनाया गया। सीढ़ियों के बाद चाँदे और चाँदों के बाद सीढ़ियों का निर्माण चूने और कोड़ियों के समिश्रण से जोड़ा गया। सिंचाई के लिये नहरों की व्यवस्था और बगीचों का निर्माण हुआ।’ (संघर्षों से जूझता बरुआसागर, पृ. 9)
‘ओरछेश विक्रमाजीत सिंह (1776-1817 ई.) ने बल्देवगढ़ में जुगल सागर एवं धरम सागर तालाबों का निर्माण करवाया।’ (बुंदेलखंड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास, पृ. 28)
ओरछेश धर्मपाल सिंह (1817-34 ई.) ने टीकमगढ़ में प्रेम सागर (विन्द्रावन ताल) एवं पृथ्वीपुर में राधा सागर नामक तालाबों का निर्माण कराया। राधासागर तालाब पर शिलालेख लगा है तथा प्रेम सागर (विन्द्रावन ताल) के निर्माण का उल्लेख टीकमगढ़ नगर के मध्य स्थित ‘नजर बाग मंदिर’ में लगे शिलालेख में किया गया है।’ (बुन्देलखण्ड के शिलालेख, पू. 49)
ओरछेश तेजसिंह (1834-41 ई.) ने टीकमगढ़ उत्तर में दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘रानी की बाउरी’ के नाम से प्रसिद्ध सात मंजिला बावड़ी का निर्माण कराया। इस बावड़ी के द्वार पर शिलालेख लगा हुआ है। There is a seven story pucca well which is known as Rani Baori. (Tikamgarh District Gazetter)
‘ओरछेश प्रताप सिंह (1874-1930 ई.) ने टीकमगढ़ नगर में सन् 1897 ई. में महेन्द्र सागर तालाब का निर्माण कराया। नगर में स्थित प्राचीन शैल सागर का जीर्णोद्धार कराया। उन्होंने अपने 55-56 वर्षीय राजत्व काल में ओरछा राज्य भर में 7086 नवीन कूप एवं 73 नवीन तालाबों का निर्माण कराया।’
The present Maharaja Sir Pratap Singh Bahadur- works of public utility always attract attention of His Highness. During his highness reign of fifty years, 217 new villages and 210 hamlets came into existence. 7086 new wells were sunk and 73 irrigation tanks were built.’ (Chiranji Lal Mathur-Bir Singh Charitra (Historical) Page 2)
‘ओरछा के अंतिम शासक वीर सिंह जूदेव ‘द्वितीय’ (1930-56 ई.) ने रमन्ना जंगल में ‘सुधा सागर’ तालाब का निर्माण कराया।’ (बुंदेलखंड का बृहद इतिहास, पृ. 96)
ओरछा के विघटन से निर्मित दतिया राज्य के बुन्देला शासकों ने वीरसिंह जूदेव ‘प्रथम’ द्वारा स्थापित सरोवर निर्माण की परम्परा को जीवित रखा
“The second rular of Datia was Subha Karan (1556-83). He constructed a large tank named after him as Karan Sagar.’ (P. N. Sriwastava Datia District Gazetter, Page 303) (वही, पृ. 301)
दतिया नरेश रामचन्द्र (1707-34) ने भी एक तालाब का निर्माण कराया। यथा – ‘In between Baroni and Datia therer is a large lake called Ram Sagar, after Raja Ram Chandra of of Datia (1707-36) who condtruceted it. (वही, पृ. 301)
दतिया नरेश रामचंद्र की महारानी सीताजू एवं उनकी उपरानी राधाबाई ने भी तालाबों का निर्माण कराया। ‘रामचन्द्र बुंदेला – उनकी रानी सीताजू ने ‘सीता सागर’ और उनकी उपरानी राधाबाई ने ‘राधा सागर’ का निर्माण कराया था।’ (बुंदेलखंड का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक अनुशीलन)
ओरछेश रामशाह (1592-1605) को पदच्युत कर मुगल सम्राट जहाँगीर ने वीरसिंह जूदेव ‘प्रथम’ को राज्याधिपति नियुक्त कर रामशाह को चंदेरी की जागीर दी थी। उन्होंने अनेक बावड़ी और तालाबों का निर्माण कराया। उनके पीढ़ी-दर-पीढ़ी उत्तराधिकारियों ने भी इस परम्परा को बनाये रखा। यथा –
‘रामशाह एवं अन्य बुंदेला शासकों ने अनेक बावड़ी और तालाबों का निर्माण चंदेरी में कराया।’ (अभिनव तैलंग ज्वाला और सौंदर्य की नगरी चंदेरी आलेख ‘राज एक्सप्रेस 9 सितंबर, 2000, पृ. 9) 1609 ई. में रामशाह ने बाद में रामशाह सागर तालाब बनवाकर समीप की पहाड़ी पर किले की आधारशिला रखी। (बुंदेलखंड का वृहद इतिहास, पृ. 97)
‘राजा देवी सिंह चंदेरी ने (1630-63ई.) ‘सिंह सागर’ का निर्माण चंदेरी में कराया।’ (वही, पृ. 98)
रामशाह के पौत्र कृष्ण सिंह को बाँसी की जागीर प्राप्त हुई थी।
‘इन्होंने बाँसी का दुर्ग एवं रोरा की बावड़ी बनवाई थी।’ (बुंदेलखंड का वृहद इतिहास, पृ. 97)
मानसिंह (1736-50ई.) ने महरौनी में दुर्ग एवं तालाब का निर्माण कराया था। यथा – ‘A small tank known as Nainsukh Sagar and a police station which is located in an old fort which was built about 1750 by Raja Mansingh. (P.B. Joshi, Jhansi District Gazetters, Page 356)
एक शिलालेख अनुसार – ‘झलारी बावड़ी का निर्माण चंदेरी के बुन्देला शासक दुर्ग सिंह (1663-1687 ई.) ने अपने शासनकाल में कराया था।’ (मजीद खाँ पठान, पुरातत्व धरोहर चंदेरी, पृ. 101) ग्राम ढंकोनी में संवत् 1743 (सन् 1886 ई.) में एक बावड़ी का निर्माण कराया गया था। बानपुर नरेश मोर प्रहलाद ने उदयपुरा में तालाब का निर्माण कराया था। (वही, पृ. 101)
‘ओरछा राज्य में भसनेह की जागीर हरदेव सिंह को मिली थी। उन्होंने संवत् 1630 वि. (1774 ई.) में चार तालाब, चौरासी पोखर (झीलें) एवं बावन कुँओं का निर्माण कराया था। कहावत है कि – चार तला चौरासी पोखर बावन कुआँ भसनेह के भीतर। इनके वंशज विजय सिंह ने 1618 ई. में ‘विजय सागर’ का निर्माण कराया था।’ (ओरछा राज्यवंश का इतिहास, पृ. 28)
ओरछा राज्य के संस्थापक महाराजा रुद्रप्रताप (1501-1531 ई.) ने अपने एक पुत्र उदयादित्य को नुना-महेबा की जागीर दी थी। उदयादित्य की शाखा से ही पन्ना राज्य का उदय छत्रसाल के पुरुषार्थ से हुआ था। उदयादित्य एवं उनके वंशजों ने महोबा में महल एवं सात तालाबों का निर्माण कराया था। जो आज भी अच्छी स्थिति में विद्यमान हैं। चम्पतराय के पुत्र छत्रसाल ने एक स्वतंत्र पन्ना राज्य की स्थापना की थी।
छत्रसाल ने कुन्डलपुर (जैन तीर्थ) में स्थित ‘वर्धमान सागर’ का जीर्णोद्धार कराया था।
आमतौर पर कहा जाता है कि झाँसी जिले के बगरा ब्लाक में स्थित कचनेव का तालाब राजा छत्रसाल का बनवाया हुआ है, लेकिन तालाब के चंदेलकालीन ढाँचे को देखते हुए लगता है कि शायद छत्रसाल ने केवल इसका नवीनीकरण किया। छत्रसाल द्वारा तालाब के बाँध पर हाथी दरवाजा भी बनवाया गया, जो आज भी विद्यमान है। (डॉ. कृष्णा गांधी का आलेख – दैनिक जागरण झाँसी 1 अगस्त, 1999 ई., पृ. 12)
छत्रसाल के पुत्र जगतराज को संवत् 1770 (1713 ई.) में चरखारी के निकट स्थित मलदुआ पर्वत पर धरती के अंदर गड़ी हुई अकूत सम्पत्ति मिली थी। उसमें 72 करोड़ १ लाख मुद्राएँ प्राप्त हुई थीं। हरिकेश कविकृत जगतराज दिग्विजय में इसका वर्णन उपलब्ध है। इस ग्रंथ का प्रकाशन चरखारी राज्य द्वारा संवत् 1960 वि. (1903 ई.) में कराया गया था। प्राप्त सम्पत्ति का उपयोग चंदेलकालीन तालाबों के जीर्णोद्धार एवं मंदिरों के जीर्णोद्धार में करने का आदेश छत्रसाल ने जगतराज को दिया था। जगत राज ने इस आज्ञा का पालन किया।
जहँ लग चंदेलन के करे कूप, बापि अगार हैं।
तहँ लौं करे जगतेश ने सब जीर्णोद्धार है।
(संधान 3 (स्मारिका), पृ. 63)
तालाबों के जीर्णोद्धार के अतिरिक्त शेष राशि से संवत् 286 से संवत् 1162 तक की चंदेलों की 22 पीढ़ियों के नाम पर पूरे 22 बड़े-बड़े तालाबों का भी निर्माण कराया गया। (आज भी खरे हैं तालाब, पृ. 74) ‘ईश्वर सागर’ ईशानगर एवं ‘बैद का ताल’ का निर्माण भी जगतराज ने कराया था।
छत्रसाल के ज्येष्ठ पुत्र हृदयशाह के पौत्र हिन्दूपत (1758-76) ने एक तालाब का निर्माण कराया। यथा – ‘Hindupat tank near Chitrakut about 1804 Sambat’ (बाँदा जिला गजेटियर, पृ. 296)
‘महाराजगंज तालाब का निर्माण भी हिन्दूपत ने कराया था।’ (बुंदेलखंड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास, प्र. 73)
पन्ना नरेश लोकपाल सिंह (1893-97) ने पन्ना में लोकपाल सागर का निर्माण कराया था। (बंदेलखंड का वृहद इतिहास, पृ. 141) महाराजा नृपत सिंह ने ‘नृपत सागर’ का निर्माण कराया था। (बुंदेलखंड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास, पृ. 78)
CHARKHARI – The former riders of Charkhari state also followed the tradition of constructing tank lake and tamples to beautify thair capital like the former rulers of chandella dynesty. There are seven tanks around the town and most these are inter connected covered with lotus flowers and surrounded by hills.’ (हमीरपुर जिला गजेटियर, पृ. 265)
चरखारी नगर जो चरखारी राज्य का मुख्यालय था, में राजा विजय विक्रमाजीत (1782-1823) ने ‘विजय सागर’ का निर्माण कराया। राजा रतन सिंह (1829-60) ने ‘रतन सागर’ का निर्माण कराया, महाराजा जयसिंह (1860-80) ने जयसिंह सागर का निर्माण कराया। महाराजा मलखान सिंह सन् 1880-1933) ने सन् 1882 में मलखान सागर का निर्माण कराया। ( प्रकृति और पुरुष, प्रो. प्रेमनारायण रुसिया अभिनंदन ग्रंथ, पृ. 293)
‘चरखारी के मंगलगढ़ नामक दुर्ग में छोटे-बड़े मिलाकर कुल सात तालाब हैं, जिनके नाम हैं – बिहारी सागर, राधा सागर, सिद्धबाबा का कुंड, रमकुण्डा, चौपरा, बाबा महावीर कुंड एवं बखत बिहारी कुंड।’ (छत्रसाल दर्शन स्मारिका, मई-जून 2011, पृ. 21)
‘Madan Roy (Lodhi) close of the 16th century was latterly a famous man of the house. He was childless. By the advice of pandits his court he built a large tank. The tank now sorely needs repairs. Madan Tal serves old charkhari.’ (Jageshwar Pd.Jwenile History of Charkhari State, Page 9)
‘राबरी ग्राम-मठ का टीला समाधि स्थल के नाम से जाना जाता है। प्राचीन तालाब की पट्टी पर दो शिलालेख हैं, जिसमें ‘विसुन सागर’ का योग है। जिससे सिद्ध होता है कि महाराजा वीरसिंह जूदेव बुन्देला के शासन की महत्त्वपूर्ण धरोहर है।’ (संधान 3 स्मारिका, पृ. 62)
‘Banda – The town left by Bundelas was probably two small and consisted a numbers of hamlets around a large tank known as Raja Ka Talab.’ (बाँदा जिला गजेटियर, पृ. 280)
‘Srinagar – A Bundela Chief Mohan Singh built the fort and two fine Talab. (हमीरपुर जिला गजेटियर, पृ. 282)
Sirol – known for its old step well appears to date from the same period as the old palace of Datia. (दतिया जिला गजेटियर, पृ. 305)
‘Kulpahar – There are large tanks constracted by Bundela Raja. The Chief of those lies to the South of the town and known as the Garha Tal.’ (हमीरपुर जिला गजेटियर, पृ. 271)
‘वीरसिंह ने किला बिजावर का निर्माण कराकर किले के पूर्वी भाग में किले से संलग्न विशाल एवं सुंदर तालाब का निर्माण कराया था, जिसका नाम राजा सागर है। तालाब के मध्य में महादेवजी की मढ़िया है, जिस कारण इसे महादेव सागर भी कहते हैं।’ (बुंदेलखंड के तालाबों एवं जल प्रबंधन इतिहास, पृ. 72)
‘महाराजगंज (छतरपुर) – पन्ना के राजा हिन्दूपत ने एक छोटा किला एवं किले के पूर्वी पार्श्व में संलग्न तालाब बनवाया था।’ (बुंदेलखंड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास, पृ. 73)