बुन्देला कालीन जल संरचनाएँ
January 25, 2025मराठा कालीन जल संरचनाएँ
January 27, 2025चंदेलों और कलचुरियों की राजसत्ता की अंतिम पतनावस्था में बुंदेलखंड के एक भू-भाग में गोंड राज्य की स्थापना का श्रीगणेश हो गया था। तेरहवीं शती में गोंड शासक मदनसिंह ने जबलपुर में मदन महल नामक एक भवन का निर्माण कराया था। तालाबों के निर्माण की दृष्टि से गोंड शासन काल को स्वर्ण युग कहा जा सकता है। विभिन्न कालखंडों में जबलपुर में ही 52 ताल तलैयों का निर्माण गोंड राजाओं द्वारा कराया गया। (मध्यप्रदेश संदेश वर्ष 105, अंक 6, पृ. 8)
गोंड साम्राज्य में निर्मित तालाब वर्षा जल को सहेजने और झरनों से प्रवाहित पानी को संग्रहीत करने की तकनीक पर आधारित थे। इन तालाबों का जल भराव क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) बहुत ज्यादा था। (वही, पृ. 12) तालाब निर्माण में काम करने वाले किसानों को बिना मूल्य पानी दिया जाता था। तालाब की देखभाल व मरम्मत करने वालों को भी मुफ्त पानी देने की व्यवस्था थी। रख-रखाव की जिम्मेदारी उसके आसपास के किसानों की होती थी। 3-4 साल में एक बार तालाब की सफाई की जाती थी। उससे निकलने वाली ‘गाद’ को मालगुजार किसानों को बाँट देता था। यह प्रथा अब भी मंडला जिले के कुछ इलाकों में देखने को मिलती है। (चौमासा, पृ. 218) तालाब निर्माण को प्रोत्साहित करने गोंड राजाओं की सीमा में, जो तालाब बनाता था उसके नीचे की जमीन के भू-स्वामी को लगान नहीं देना पड़ता था। (मध्यप्रदेश संदेश वर्ष 105, अंक 6, पृ. 11)
गढ़ा स्थित देवताल के निकट पहाड़ियों से घिरा कोलाताल गोंड राजाओं द्वारा बनवाया गया पहला तालाब है। तेरहवीं शताब्दी में गोंड शासक मदनसिंह ने कमला सागर का निर्माण कराया था, जो अब कोलाताल कहलाता है। (वही, पृ. 12) गोंडकाल में करीब एक सौ बीस बावड़ियाँ निर्मित कराई गई थीं, जिनमें से अनेक का निर्माण राजधानी गढ़ा में हुआ था। (वही, पृ. 9)
‘संग्रामशाह जिस प्रकार गोंड वंश के सबसे बड़े शासक थे, उसी प्रकार बड़े भारी वास्तुकला के प्रेमी भी थे। इन्होंने बहुत से मंदिर, तालाब, किले आदि बनवाये थे। जबलपुर के निकट संग्राम सागर प्रसिद्ध ही है। प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से यह अत्यन्त सुहाना है। तीन ओर पहाड़ियाँ हैं और चौथे ओर एक बड़ा भारी पत्थरों से बना हुआ कृत्रिम बाँध है। जल गंभीर एवं स्वच्छ है।’ (त्रिपुरी का इतिहास, पृ. 161)
‘सिंगोरगढ़ के पश्चिम में बहुत बड़े क्षेत्र को घेरे हुए एक झील थी, जिसमें अब 28 गाँव बसे हैं। दुर्ग के निकट स्थित झील को संभवतः विजयादशमी के अवसर पर विजय सागर नाम दिया गया है।’ (दमोह जिला गजेटियर, पृ. 466) चोरागढ़ किले के भीतर जल एकत्र करने हेतु (संग्राम शाह के समय के) पक्के तालाब बने हुये हैं। (नरसिंहपुर जिला गजेटियर, पृ. 447)
संग्राम शाह के पुत्र राजा दलपत शाह की अध्यक्षता में सन् 1540 ई. को चैत्रमास में 22 तालाबों और 170 सिंचाई कूपों का निर्माण का फैसला हुआ था। (लाजपत आहूजा सम्पा. मध्यप्रदेश संदेश वर्ष 105, अंक 6. पृ. 12) ज्ञातव्य है कि यह निर्णय सन् 1538-39 की अनावृष्टि एवं सूखा के कारण लिया गया था। अल्पकाल शासन करने के पश्चात् वह दिवंगत हो गये। नाबालिग पुत्र वीर नारायण राजा बना। प्रशासन का भार दलपति शाह की विधवा महारानी दुर्गावती ने सम्हाला।
‘रानी दुर्गावती (1548-63) गढ़ा का रानी ताल दुर्गावती का बनवाया हुआ है।’ (बुंदेलखंड का वृहद इतिहास, पृ. 46) सुप्रसिद्ध रानी दुर्गावती द्वारा बनवाया गया रानी ताल, रानी की सेविका द्वारा बनवाया गया ‘चेरीताल’ एवं रानी के मंत्री द्वारा बनवाया गया’ आधार ताल’ है। (जबलपुर जिला गजेटियर, पृ. 827)
‘गोंड साम्राज्य और खासकर 1548 से 1564 के बीच दुर्गावती के जमाने में जबलपुर में कई तालाब खोदे गये और कई प्राकृतिक तालाबों का पुनर्निर्माण कराया गया। इनमें 100 एकड़ का रानी ताल। इसके लिये दुर्गावती ने आंध्रप्रदेश से कारीगरों को बुलवा कर पत्थर कटवाये और सीढ़ियाँ तथा किनारे पटवाये थे। दुर्गावती की एक सहचरी थी रामचेरी। रानी ने उसके नाम से एक तालाब निर्माण करवाया था। जो चेरी ताल के नाम से 9.70 हेक्टेयर में फैला है।
देवा ताल, ठाकुर ताल, बंधा ताल की श्रृंखला थी। साँकल ताल दुर्गावती के अमात्य महेश ठाकुर बिहार के तिरहुत से आये थे। उन्होंने ठाकुर ताल, तिरहुतिया ताल का निर्माण कराया था। 9.56 हेक्टेयर में फैला आधार ताल दुर्गावती के मंत्री आधार सिंह कायस्थ की स्मृति में बनवाया गया था।’ (चौमासा, पृ. 233-34)
सोलहवीं सदी में बनी उजारपुरवा की बावड़ी पाँच मंजिल की है। चार हजार वर्गफुट की इस बावड़ी की दीवारें चूना-गारा की जुड़ाई से बनी हैं। 40 फुट में प्रवेश द्वार एवं बुर्ज बने हैं, उसके नीचे 30 गुणा 70 फुट में सीढ़ियाँ बनी हैं। रोशनी के लिये रोशनदान और हवा के लिये गवाक्ष बने हैं। ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से निजात पाने बैठने के लिये छोटे-छोटे कक्ष बने हैं। बावड़ी को गोंड राजा मधुकर शाह ने अपने चचेरे भाई वीर नारायण की स्मृति में बनवाया था। जानकार इस बावड़ी को सन् 1576 से 1592 के बीच का निर्मित मानते हैं। (मध्यप्रदेश संदेश वर्ष 105, अंक 6, पृ. 8) ज्ञातव्य है कि बावड़ी रानी ताल के अगोर से लगे ग्राम उजारपुरवा में वीर बावड़ी के नाम से प्रसिद्ध है।
मधुकर शाह के पौत्र हृदय शाह ने लगभग 50 वर्ष राज्य किया। उसने गढ़ा के पास एक बेहतरीन तालाब गंगा सागर बनवाया। (चौमासा, पृ. 216) यह तालाब 18.70 हेक्टेयर में फैला हुआ है। कुण्डम में गोंड राजा कल्याण सिंह ने एक विशाल तालाब का निर्माण कराया था। इससे ‘हिरन’ नदी निकली है। (जबलपुर जिला गजेटियर, पृ. 634) बचई के तीन तालाब तथा चिलाचौन खुर्द के एक तालाब के संबंध में कहा जाता है कि इसका निर्माण गोंड युग में एक गोंड सरदार ढंडू द्वारा कराया गया था। (नरसिंहपुर जिला गजेटियर, पृ. 11)
“Talbehat – derives its name from Tal (lake) as an extensive sheet of water exists the site and bihat meaning village in language of Gonds who had the original rulars of this area.” (झाँसी जिला गजेटियर, पृ. 363)
“Girar – remains of old fortification constructed of loose rokes and a well both of which are said to have been built by Gonds.” (वही, पृ. 342)
“Roni – two old tanks Gonds occupative.” (वही, पृ. 361)
“Chaukigarh – The fort once formed a strong hold of Gonds and is situated on the summit of a hill. The fortress contains ruiness of some buildings anda baori.” (रायसेन जिला गजेटियर, पृ. 343)
‘जबलपुर के महाराज ताल का निर्माण गोंड शासन के अवसानकाल में हुआ।’ (मध्यप्रदेश संदेश वर्ष 105 अंक 6, पृ. 10) ‘वर्तमान छतरपुर जिले में 1500-1600 संवत् के मध्य खटोला नाम का गोंड राज्य था। खटोला में 52 कुआँ, 84 बेहर व कई तालाब चूना, गारा द्वारा बनाये गये स्थल आदि थे।’ (छतरपुर त्रिशताब्दी स्मारिका, पृ. 50)
‘सूरजशाह गोंड प्रभावशाली पराक्रमी एवं लोकप्रिय राजा रहा। जिसने खटोला किले एवं राज्य की सुरक्षा हेतु सुदृढ़ किलाबंदी की थी। पीलखाना क्षेत्र प्रांगण में दो घुड़बावड़ियाँ हैं, जो हाथी एवं घोड़ों को पानी पीने को बनवाई गई थीं। इसी गंज में दो तालाब भी बनवाये थे।… इस पठारी परिक्षेत्र में पानी का अभाव रहा है। समुद्र तल से 1300 फुट ऊँचा पठार है, जिसमें 52 कुआँ, 84 बावड़ियाँ और 7 तालाब होने पर भी पानी की कमी सदैव रही।’ (बुंदेलखंड के दुर्ग, पृ. 81-82
'किशनगढ़ के तालाब
किशनगढ़ एक प्राचीन गाँव है। यहाँ एक प्राचीन गोंडवानी किला है। किशनगढ़ में प्राचीन दो सुंदर तालाब हैं।’ (बुंदेलखंड के तालाब एवं जल प्रबंधन का इतिहास, पृ. 71) ‘घुवारा में गोंडकालीन तालाब है।’ (वही, पृ. 71)
'जोधपुर तालाब
गोंडवानी शासनकाल में शाह नगर एवं जोधपुर जोधाशाह गोंड राजा के दो बड़े नगर थे। बस्ती जोधपुर पहाड़ के उत्तर-पूर्वी पार्श्व में थी, जो अब वीरान वेचिराग है। किला एवं बस्ती के मध्य विशाल मैदान है, जिसमें किला से संलग्न दो तालाब हैं।…. तालाबों के उत्तरी भाग में एक विशाल बावड़ी है, जिसमें ग्रीष्मऋतु में लबालब (ऊपर तक पानी भरा रहता है) पहाड़ पर मात्र 2 तालाब 3-4 बावड़ियाँ, कुएँ एवं हनुमान मंदिर हैं।’ (वही, पृ. 79)
‘कुँडलपुर में वर्धमान सागर के अलावा भी एक दूसरा तालाब है, वह भी गोंडयुगीन है।’ (वही, पृ. 83)
'बरात तालाब
यहाँ प्राचीन गोंडवानी अच्छा छोटा तालाब रहा है। इसका बाँध 200 मीटर लंबा है।’ (वही, पृ. 85)
‘दमोह का फुटेरा तालाब गोंडवानी है।’ (वही, पृ. 85)
‘कनौरा तालाब यह ग्राम प्राचीन है, जो गोंडकालीन है। यहाँ प्राचीन विशाल तालाब है।’ (वही, पृ. 86)
'रनेह के तालाब
यहाँ गोंडयुगीन 3 तालाब हैं।’ (वही, पृ. 86)
'मालथौन का तालाब
ईदगाह के पास एक प्राचीन गोंडवानी युगीन तालाब है, जो सुरक्षा-सफाई एवं मरम्मत की व्यवस्था के अभाव में बीहड़ हो रहा है।’ (वही, पृ. 51)