गोंड कालीन जल संरचनाएँ
January 25, 2025परमार एवं परिहार कालीन जल संरचनाएँ
January 28, 2025बुंदेलखंड के कुछ भू-भाग पर सन् 1735 ई. से मराठों का अधिकार रहा। ज्ञातव्य है कि पन्ना नरेश महाराजा छत्रसाल ने बाजीराव को अपने पन्ना राज्य का तीसरा भाग देने का वचन दिया था। सन् 1735 ई. में बाजीराव ने गोविन्दराव (वल्लाल) खैर को बुंदेलखंड के मराठी भू-भाग का सूबेदार नियुक्त किया था। धीरे-धीरे मराठों ने अपने राज्य की सीमा का विस्तार कर बुंदेलखंड के काफी भू-भाग पर अधिकार कर लिया
‘गोविन्द पंडित ने खुरई में किले का निर्माण करवाया, एक तालाब खुदवाया, जो किले की दक्षिणी दीवार का स्पर्श करता है और एक पाषाणों से बने पक्के तालाब में जल से घिरा एक मंदिर बनवाया।’ (सागर जिला गजेटियर, पृ. 521)
‘सन् 1750 ई. में नारो शंकर को झाँसी का प्रबंधक नियुक्त किया गया था। उसने झाँसी दुर्ग में शंकरगढ़ का निर्माण कराया था।’ “Shanker Garh, a part of the fort built by Naru Shanker (the Maratha Chief) in 1742 contains a shiva temple and a well.” (झाँसी जिला गजेटियर, पृ. 348)
‘बालाबेहट में भी मराठाकाल में निर्मित एक कुआँ है। “To the north of the village is an old fort which was built on the site of an old Gound fort by Maratha general Gangadhar. Inside the fort there is abaoli (well) which is still in good condition. (वही, पृ. 327)
दमोह में बालाजी दीवान ने एक छोटे तालाब का निर्माण कराया था। ‘दीवान की तलैया उसके निर्माता मराठा हाकिम बालाजी दीवान के नाम पर रखा गया था। जिसकी पत्नी इसके तट पर सती हुई थी।’ (दमोह जिला गजेटियर, पृ. 455)
‘विनायका में एक तालाब है, जो पहले काफी अच्छा और बड़ा था। विनायक राव सूबेदार (1802-1818) जिसके नाम पर विनायका नाम पड़ा, ने बनवाया था। गढ़ी में एक बावरी है।’ (‘मधुकर’, वर्ष 4, अंक 15-16)
‘सागर शहर की सबसे महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक बावड़ी मॉडल स्कूल के पास नागेश्वर मंदिर के सामने है। इसका निर्माण मराठा काल के दौरान हुआ। बड़ा बाजार में लक्ष्मीपुरा दत्त मंदिर के पास की बावड़ी का निर्माण भी मराठा काल में हुआ था।’ (मध्यप्रदेश संदेश वर्ष 105, अंक 6, पृ. 15)
“Pachwara – It has a large tank, a maratha fort. (now in ruins)” (झाँसी जिला गजेटियर, पृ.358)
‘कुल पहाड़ – यहाँ प्राचीन राजाओं के सुदृढ़ किले देखते ही बनते हैं। इनमें बावड़ियाँ हैं, जिनका पानी आज तक नहीं सूखता। कहा जाता है कि ये किले मराठों के समय के हैं।’ (‘मधुकर’, वर्ष 3, अंक 23-24, पृ. 569)
“Banari, There are maratha Building built by Binaik Rao about the year 1830. The baoli is a large circulor well Commended on one side with a series of Tehkhanas with three storeys of colonnades all under ground, the top of the outer most being nearly level with the surface of the ground.” (बाँदा जिला गजेटियर, पृ. 280)
‘किशनगंज में मराठाकाल में निर्मित दो तालाब हैं, जिनके चारों ओर पक्के घाट बने हुए हैं।’ (दमोह जिला गजेटियर, पृ. 460)
“Charwa – There are a number of Bawolis or step well in and around the village some of the important ones are the char Bawoli, Ramjhani and Panch Pir Bawadi. During the reign of the Peshwa one of their servant, namely Naro Ballal Bhuskute built a fort about AD 1750 at this place. The fort encloses an area of about 2 acres, on tow sides in the east and the west there are big gates and towers on the three corners and a Bawali (step well) on the forth corner.” (होशंगाबाद जिला गजेटियर, पृ. 434)
‘मड़ावरा का तालाब – पहले यह क्षेत्र सागर के मराठा मामलतदार के अधिकार में था, जहाँ सागर के मोराजी कामदार नियुक्त थे। मोराजी ने यहाँ किले का निर्माण कराकर ग्राम को मड़ावरा नाम दिया था। किले से संलग्न दक्षिणी पार्श्व में मोराजी ने सुंदर तालाब का निर्माण कराया था।’ बुंदेलखंड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास, पृ. 94)
‘गुरसराय तालाब – यह किला परकोटा से संलग्न पूर्वी अंचल में सुंदर निस्तारी तालाब है, जो यहाँ के मराठा मामलतदार ने बनवाया था।’ (वही, पृ. 105)
‘शिवसागर तालाब झाँसी का शिवसागर तालाब मामलतदार शिवराम मराठा ने बनवाया था, जो निस्तारी तालाब है।’ (वही, पृ. 106)
‘कौंच का सागर तालाब – मराठा प्रबन्धक (सूबेदार) गोविन्दराव का बनवाया हुआ है।’ (वही, पृ. 119)
‘कोठी तालाब, कटोरा तालाब एवं गणेश तालाब, कर्वी यह तालाब विनायक राव मराठा ने बनवाये थे।’ (वही, पृ. 130)