अन्य शासकों एवं जन सामान्य द्वारा निर्मित जल संरचनाएँ
January 28, 2025दतिया
January 30, 2025विन्ध्याचल पर्वत की गोदी में अवस्थित बुन्देलखंड नाम से अभिहित भू-भाग का अधिकांश भाग पथरीला बंजर था। फलस्वरूप यहाँ चरागाहों के आश्रय से बहुत कम लोग निवास करते थे। जब इस क्षेत्र में चंदेल सत्ता का अभ्युदय हुआ तो सर्वप्रथम उन्होंने इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति का अध्ययन कराया। इस अध्ययन के आधार पर बरसाती जल को संग्रहीत कर उसे जनोपयोगी बनाने हेतु तालाबों के निर्माण का सिलसिला आरंभ हुआ। जिसे चंदेल शासन समाप्त होने पर बुंदेला शासकों ने बनाये रखा।
सन् 1530 ई. में गढ़कुंडार नरेश रुद्र प्रताप ने ओरछा नगर का शिलान्यास कर उसे अपनी राजधानी बनाया। बुंदेलों के अधीन क्षेत्र ‘बुन्देलखंड’ नाम से तभी अभिहित हुआ। इस भू-भाग के पूर्व शासकों ने जल संग्रहण हेतु जल संरचनाओं के निर्माण की परंपरा को आगे बढ़ाया। वर्तमान समय में बुन्देलखंड का भू-भाग मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश राज्यों के मध्य बँटा हुआ है। बुंदेलखंड में स्थित जिला टीकमगढ़ (पूर्व ओरछा राज्य में) सर्वाधिक जल संरचनाएँ विद्यमान हैं। जिनका विवरण निम्नलिखित अनुसार है।
चंदेल शासनकाल में टीकमगढ़ जिले में सर्वाधिक तालाबों के निर्माण की जानकारी शासकीय अभिलेखों में अंकित है। इनमें सर्वाधिक विशाल एवं महत्त्वपूर्ण तालाब है –
मदन सागर जतारा
इसका निर्माण मदन वर्मन चंदेल (1130-1165 ई.) ने कराया था। मदन सागर तालाब का बाँध लगभग 600 मीटर लंबा, 30 फुट चौड़ा है। इसका भराव क्षेत्र 3000 एकड़ से भी अधिक है। वर्षाऋतु के समापन पर यह सिन्धु जैसा प्रतीत होने लगता है। बाँध के उतर-पूर्वी भाग की पहाड़ी पर ओरछेश भारतीचन्द्र द्वारा बनवाया हुआ किला है, जो अब जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है। ओरछा स्टेट गजेटियर में उल्लेख है कि- ‘नौ सौ बेर, (बावड़ी) नवासी कुआँ, छप्पनताल जतारा हुआ।’ अनेक बाग-बगीचों एवं हरी-भरी पहाड़ियों के मध्य स्थित होने के कारण जतारा को बुन्देलखंड की स्विट्जरलैंड माना जाता था।
ज्ञातव्य है कि इस तालाब की ख्याति से प्रभावित होकर मुगल सम्राट शाहजहाँ और उसका पुत्र औरंगजेब भी जतारा आया था – In his Jaurney through the district of Orchha the Emperor halted at many places He visited Bir Sagar tank, built by Bir Singh Deo and also Jatara with its fine Samundar Tal as it-is called in the Shah Jahan nama or the Madan Sagar as it is known locieally. This tank was built by Madan Varman Chandella and repaired by Bir Singh. तथा – ‘दूसरा तालाब समंदर सागर परगना जतारा में है। इसका गिरदाव आठ कोस है। ….. बादशाह कुछ दिन वहाँ रहे। शुक्रवार, दिसंबर 4, 1635 ई. को शाहजादा औरंगजेब घामूनी से परगना जतारा में बादशाह के पास हाजिर हो गया। रविवार दिसंबर 6, 1635 ई. को बादशाह ने सिरोंज के रास्ते से दक्षिण को कूच किया।’
पं. बनारसीदास जी चतुर्वेदी जो ‘मधुकर’ पाक्षिक के सम्पादक के रूप में कुण्डेश्वर (टीकमगढ़) में उन दिनों निवास करते थे, ने आचार्य डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी को टीकमगढ़ आमंत्रित किया। उन्हें जतारा का भ्रमण कराया गया। मदन सागर तालाब को देखकर वह अभिभूत हो गये।
मधुकर के यशस्वी सह सम्पादक श्री यशपाल जैन की धर्मपत्नी श्रीमती आदर्श कुमारी जैन ने जतारा और वहाँ स्थित मदन सागर तालाब की प्रशंसा सुनी तो वह भी बैलगाड़ी से कुण्डेश्वर से जतारा तक 45-46 किलोमीटर यात्रा कर जतारा पहुँचीं। उन्होंने लिखा कि ‘बस्ती और तालाब का दृश्य देखकर मैं मंत्र मुग्ध-सी खड़ी रह गई और अपने जीवन में ऐसा आकर्षक दृश्य मैंने पहले कभी नहीं देखा था। हम लोग तालाब देखने और स्नान करने के अतिरिक्त जलवृष्टि के कारण भ्रमण नहीं कर सके।’
ओरछा स्टेट गजेटियर में जतारा के संबंध में उल्लेख है कि – “It is most picturesque place. Like Tikamgarh its lies below the level of a lake. The lake in case of great size, being about 1-1/2 mile long, by 1 broad, with same small Island at the end near the town. It is retained by two dams of no great length closing the only gaps in semi circle of hills. These dams were built by the Chandella Chief Madan Varman (1120-70) after whom the lake is called madan Sagar. The water of this lake supply the town and also irrigate a large area by gravitation, through suphons and a canal made in 1897.
The town is famous for its plesant climate and is usually known as Kashmer of Bundelkhand.”
मदन सागर की अगौर में सत मड़ियों (सात मड़ी) के भग्नावशेष विद्यमान हैं। इनके पास एक शिलालेख लगा था। जिसका उल्लेख गजेटियर में इस प्रकार किया गया है –
“Sat Marhi ki chanre Aur talao ki par, jo houai chandel ko, So leve ukhar.”
This stone reposed in undisturted place till 1895, when some Kanjars disguised as Gusains dug it’up and if there was a treasure no doubt removes it.’ (ईस्टर्न स्टेट गजेटियर पृ. 78)
मदन सागर अहार
बुन्देलखंड के सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थल अहार में मदन वर्मन का बनवाया हुआ दूसरा ‘मदन सागर’ विद्यमान है। प्राचीन लेखों में इस स्थान का नाम ‘मदनेश सागरपुर’ के रूप में मिलता है। इस मदन सागर तालाब का बंधान 350 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा एवं 8 मीटर ऊँचा विशाल बाँध है। बाँध पर मदनेश्वर शिव का एक विशाल मठ था, जिसका मात्र अवशेष बचा है। मठ के पश्चिमी पार्श्व में पहाड़ी की तलहटी में एक सुंदर बावड़ी का निर्माण भी मदन वर्मन ने कराया था।
'ग्वाल सागर' बल्देवगढ़ -
इसका निर्माण भी मदन वर्मन चंदेल ने कराया था। पेट का पहाड़ एवं बड़ा पहाड़ के मध्य पठार को बाँध बनाकर उनके प्रवाह को रोककर इस तालाब का निर्माण कराया गया था। ग्वाल सागर का बाँध लगभग सौ मीटर लंबा, साठ मीटर चौड़ा एवं बीस-बाईस मीटर ऊँचा है। बाँध पर ओरछेश विक्रमाजीत सिंह (1776-1817 ई.) ने एक विशाल दुर्ग का निर्माण कराकर ग्वाल सागर की शोभा में चार चाँद लगा दिए थे। तालाब के बाँध पर बने इस किले में भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलदाऊ का मंदिर बनवाकर इसे बल्देवगढ़ नाम दिया था। जबकि मदन वर्मा के समय इसे बाँध के नाम से जाना जाता था।
जुगल सागर बल्देवगढ़
ग्वाल सागर से प्रवाहित अतिरिक्त जल को रोकने हेतु ओरछेश प्रताप सिंह ने लगभग 45 फुट ऊँचा एवं 35 फुट चौड़ा पत्थर एवं चूना से बाँध बनवाकर घाटों पर सीढ़ियाँ बनवाकर इसे निस्तारी तालाब का रूप दिया था। बाँध पर जुगल किशोर के मंदिर का निर्माण कराया था।
धरम सागर बल्देवगढ़
जुगल सागर से प्रवाहित अतिरिक्त जल को रोकने हेतु प्रताप सिंह ने पत्थर एवं चूना से बाँध बनवाया था। इसका जलभराव क्षेत्र जुगल सागर के पीछे बने बाँध के पृष्ठ भाग में बनी मदन बेर तक था। इस प्रकार किला एवं बल्देवगढ़ नगर चारों ओर से जल से घिर गया था।
नारायणपुर
यहाँ दो पहाड़ियों के मध्य बाँध बनाकर चंदेलकाल में एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया गया। तालाब के बाँध पर दो प्राचीन चंदेलकालीन मठ हैं। इनमें एक शिवमठ है, जबकि दूसरा मूर्तिविहीन तथा जर्जर अवस्था में है। इस मठ में एक शिलालेख लगा होने की जानकारी प्राप्त होती है, जिसमें चंदेल नरेशों की वंशावली एवं उनके लोकहितकारी कार्यों का उल्लेख था। बाँध के उत्तरी पार्श्व में एक सूर्य मंदिर भी था। जिसका ढाँचा मात्र खड़ा है। सूर्य प्रतिमा नारायणपुर के एक मंदिर में प्रतिष्ठित है।
बराना-बम्हौरी
बराना-बम्हौरी का केवलस सागर सरोवर भी चंदेलकालीन है। यह बाँध लगभग 200 मीटर लम्बा, 40 फुट ऊँचा और 60 फुट चौड़ा है। इसे केवल वर्मा चंदेल ने बनवाया था। बाँध से लगी हुई पहाड़ी पर प्राचीन बस्ती के चिन्ह विद्यमान हैं।
एक ब्रिटिश अधिकारी स्लीमैन पिंडारियों ठगों का दमन करने के उद्देश्य से बुन्देल क्षेत्र में आया था। उसने मडावरा (ललितपुर उ.प्र.) से ओरछा राज्य की सीमा में प्रवेश किया था। टीकमगढ़ से झाँसी दतिया की ओर प्रस्थान करते समय वह दिनांक 11 दिसम्बर 1935 को बम्हौरी में रुका था। उसने थस्बराना के ताल का उल्लेख अपने यात्रा वर्णन Ranbles and recollections में किया है। थस्बराना तालाब के संबंध में उसने लिखा है कि – “Bumhoree is a nice little town, beautifully situated on the bank of fine lake, the water of which presereved during the late famine the population of this and six others small town which are situated near its borders and have their lands irrigated from it. This large lake is formed by an artificial bank or wall, at the sougth-east-end, which rosts one arm upon the high range of white quarly rocks, which runs alongits south-west side for several miles looking doan into the cleardeep water and forming a beautiful landscape.”
केवलस सागर एवं नदनवारा झील की सुन्दरता से स्लीमैन अभिभूत हो गया था। वह लिखता है कि – ‘झील चार मील चौड़ी और दो मील लम्बी थी और उसके किनारे इतनी ही लम्बाई-चौड़ाई में गेहूँ के खेत फैले हुये थे, जिनमें बीच-बीच में अमराई तथा गन्नों के खेत थे। इस झील का नाम केवलस झील था। क्योंकि इसका निर्माण ‘केवल’ नामक चंदेल राजकुमार ने किया था। उसके किले के खण्डहर पहाड़ी के ऊपर स्थित थे।
पहाड़ी की चोटी से स्लीमैन ने आठ मील दूर पश्चिम में नदनवारा झील के दर्शन किये। यह झील केवलस झील से बड़ी थी और उसकी तरह ही सूखा पड़ने के समय लोगों की जलापूर्ति करती थी और खेतों में सिंचाई होती थी।’ (मध्यप्रदेश विदेशी यात्रियों की निगाह में, पृ. 86)
नदनवारा में स्थित जिले के सबसे बड़े तालाब को लोग नदनवारा तालाब के नाम से ही जानते हैं। जबकि इसके समुद्र सागर तथा सिन्धु सागर नाम भी प्राचीन अभिलेखों में प्राप्त होते हैं। इसे चंदेलकालीन ही माना जाता है। इसका बाँध टूट जाने पर ओरछेश वीर सिंह जूदेव (1605-25 ई.) ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाँध की लंबाई 250 मीटर और ऊँचाई 17.5 मीटर है तथा चौड़ाई 17 मीटर है। इससे लगभग 2800 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।
कुडार ओरछा राजधानी (1531) की स्थापना से पूर्व बुन्देला शासकों का मुख्यालय कुडार ही था। यहाँ चन्देलकालीन दुर्ग था जिसको ओरछेश वीरसिंह जू देव ने नया स्वरूप प्रदान किया था। कुडार में अनेक तालाब हैं। यथा –
सिंदूर सागर
सिंह सागर – यह प्राचीन चंदेली तालाब था। सोहनपाल ने इसी सिंदूर सागर के तट पर अपनी आराध्या देवी गिद्धवाहिनी के मंदिर का निर्माण कराकर प्रतिष्ठा की थी। तालाब के क्षतिग्रस्त हो जाने पर ओरछेश वीर सिंह जू देव ने इसका पुनर्निर्माण कराकर उसे भव्यता प्रदान की थी।
वीरसिंह देव प्रथम के नाम से तीन तालाबों के निर्माण का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है। पहला ‘वीर सागर’ तथा दूसरा ‘सिंह सागर’ और तीसरा ‘देव सागर’। सिंह सागर का बाँध लगभग साढ़े पाँच चेन है तथा इसका भराव लगभग छह वर्गमील है। इससे लगभग 1300 एकड़ क्षेत्र की सिंचाई होती है।
फुटेरा तालाब
यह भी एक चंदेली तालाब है, जो फूटा हुआ होने के कारण फुटेरा तालाब कहा जाता है।
पुरैनिया तालाब
बुंदेलखंड में कमल को पुरैन कहते हैं। कमल पुष्पों से आच्छादित रहने के कारण इसे पुरैनिया तालाब कहा जाता है। यह निस्तारी तालाब है।
गंज का तालाब
इसका निर्माण वीर सिंह जू देव ने गंज नामक स्थान पर कराया था।
वीर सागर
इस ग्राम का नाम ही ‘वीर सागर’ तालाब के नाम पर पड़ा। जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि इसका निर्माण वीर सिंह जू देव ‘प्रथम’ ने कराया था। यह तालाब 5 कि.मी. लंबे एवं 2-1/2 कि.मी. चौड़े क्षेत्र में फैला हुआ है।
थर बराना
तालाबपुरा गाँव के पास 200 मीटर लंबा एवं 40 मीटर चौड़ा है। घाट पत्थरों के बने हुए हैं। यह तालाब भी चंदेलयुगीन है। सन् 1905 ई. में ओरछेश प्रतापसिंह ने इस तालाब में सुलूस बनाकर नहरें निकलवाई थीं।
टीकमगढ़ नगर
टीकमगढ़ नगर में सबसे प्राचीन तालाब ‘शैल सागर’ है जो लगभग अपना अस्तित्व खो चुका है। इसका निर्माण ओरछेश धर्मपाल सिंह (1817-34 ई.) की महारानी लड़ई सरकार ने करवाया था।
महेन्द्र सागर
तालाब का निर्माण ओरछेश प्रताप सिंह जू देव ने दो छोटे-छोटे तालाबों को एक कराकर कराया था, जो निस्तारु तालाब था। इससे सिंचाई हेतु पानी दिया जाने लगा है, जिससे यह अब ग्रीष्मकाल में लगभग जलविहीन हो जाता है।
हनुमान सागर
तालाब टीकमगढ़ से पश्चिम दिशा में लगभग तीन सकिलोमीटर की दूरी पर है। इसी तालाब के निकट बौरी का सुप्रसिद्ध हनुमान जी का मंदिर है।
अडजार
अडजार जो तहसील मुख्यालय निवाड़ी की सीमा से लगा हुआ है, में सुजान सागर नामक तालाब का निर्माण सुजान सिंह ओरछा नरेश ने कराया था। यहाँ तीन शिलालेख लगे हुए हैं, जिनमें एक फारसी भाषा का है तथा दो शिलालेख देवनागरी लिपि में हैं।
ओरछा
बुन्देलखंड का विभिन्न छोटे-बड़े देशी राज्यों के विभाजन के पूर्व बुन्देलखंड का ओरछा राज्य ही एक मात्र राज्य था। इसी के विघटन से बुन्देलखंड में अनेक बुंदेला एवं गैर बुन्देला राज्यों का उदय हुआ। ओरछा नगर बेतवा (बेत्रवती) के तट पर स्थित है। इस कारण यहाँ तालाब की आवश्यकता अनुभव नहीं की गई। यहाँ लोगों ने कुओं का निर्माण कराया। एक कुआँ में लगा शिलालेख ध्यातव्य है।
कारी
कारी का दीप सागर तालाब चंदेलकालीन है। इस पर शिलालेख लगा है। यथा – ‘संवत् 1446 भादोंसुदि 8 रबऊ श्री बेटी दीप कुंवर ने ताल बनवायो। ताल को नाम दीप सागर।’
(बुन्देलखण्ड के शिलालेख, पृ. 27)
पपावनी
टीकमगढ़ – बल्देवगढ़ मार्ग पर टीकमगढ़ से 14 कि.मी. दूरी पर स्थित एक प्राचीन ग्राम है। यहाँ दो बावड़ी बनी हैं। एक बावड़ी इतनी विशाल है कि उसमें सीढ़ियों से उतर कर हाथी घोड़ा, ऊँट जैसे पशु भी जल पी सकते हैं।
हीरानगर टीकमगढ़
झांसी मार्ग पर टीकमगढ़ से 10 कि.मी. दूर एक पाँच मंजिल बावड़ी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। एक विशाल बगीचे के मध्य यह एक महल जैसा आभास देती हुये विद्यमान है। बावड़ी पर शिलालेख लगा है।
कोटरा
कोटरा में एक प्राचीन चंदेलकालीन तालाब है। तालाब के बाँध पर एक विशाल भव्य मठ निर्मित है, जो मरम्मत के अभाव में जीर्ण-शीर्ण होता जा रहा है। आकर्षण की दृष्टि से यह जिले का सबसे महत्त्वपूर्ण तालाब है।
‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’ की भाँति टीकमगढ़ जिला में सरोवर की संख्या अनन्त तो नहीं है, किन्तु उनकी गाथा अनन्त है। जिले में विद्यमान सहस्त्रों की संख्या में सरोवरों का पृथक-पृथक वर्णन हेतु चाहिए 500-1000 पृष्ठों का एक बड़ा ग्रंथ।
टीकमगढ़ जिला के 866 आबाद ग्रामों में 504000 (पाँच सौ चार हजार) हैक्टेयर भौगोलिक क्षेत्रफल में 962 पुराने चंदेली तालाब हैं। इतने कम क्षेत्र में तालाबों की यह अधिकता देश में अन्यत्र कहीं नहीं है। आज इन बाँधों मात्र का मूल्यांकन कई अरब रुपया होगा।
विशेष
परिशिष्ट क्रमांक-1 में टीकमगढ़ जिले के तालाबों की जानकारी पृथक से दी गई है।