बुन्देलखण्ड की जिलेवार जल संरचनाएँ टीकमगढ़
January 30, 2025छतरपुर
January 30, 2025दतिया
बुन्देलखंड में चंदेल सत्ता द्वारा जल संरचनाओं की स्थापित परम्परा को ओरछेश वीर सिंह जू देव ‘प्रथम’ (1605-27 ई.) ने आगे बढ़ाया। दतिया जो उन्हीं के राज्यांतर्गत आता था, में उन्होंने संवत् 1675 (1618 ई.) में तरनताल का निर्माण कराया तथा उसके मध्य ‘बादर महल’ का निर्माण कराया। अगोरा में उन्होंने ‘वीरसागर’ का निर्माण कराया।
इसके अतिरिक्त उन्होंने सिरोल एवं चंदेवा में श्रेष्ठतम बावड़ियों का निर्माण कराया। सिरोल – दतिया से मात्र 8 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इसका उल्लेख आर्कलोजीकल सर्वे ऑफ इंडिया रिपोर्ट 1929-30, पृ. 53 पर निम्नलिखित अनुसार किया गया है-
“The well appears to date from the same period as the old palace of Datia and recalls the general plan and design of the famous step wells of Ahmedabad in Gujrat.”
सिरोल में इसी के साथ एक महल का निर्माण भी कराया गया जो सिरोल महल के नाम से प्रसिद्ध है। इसका उल्लेख भी सर्वे रिपोर्ट में किया गया है –
“It is a small building resembling Maharaja Bir Singh Dev’s palace at Data in general outlines. It is stated that this small structure was erected with a part of the materal prepared for the large palace of Datia. It is two storeyed building about 40 metres square.”
वीरसिह देव द्वारा बनवाई गई चंदेवा की बावड़ी शिल्प में तो सिरोल की बावड़ी के ही समान है, किंतु चंदेवा की बावड़ी सिरोल की बावड़ी से आकार में विस्तृत है। यह दतिया-भाण्डेर मार्ग पर दतिया से 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बावड़ी के कुएँ के पीछे दालान में शिवलिंग एवं हनुमान जी का विग्रह प्रतिष्ठित है।
(बुंदेली विरासत अक्टूबर 2015, पृ. 66-67)
वीरसिंह जू देव ‘प्रथम’ द्वारा जल संरचनाओं के निर्माण की परम्परा को दतिया नरेश शुभ करना (1655-1683 ई.) ने आगे बढ़ाते हुए ‘करन सागर’ का निर्माण कराया।
(बुंदेलखण्ड का वृहद इतिहास, पृ. 106)
दतिया नरेश रामचन्द्र (1707-36 ई.) ने ‘राम सागर’ तालाब का निर्माण कराया तो उनकी राजमहिषी सीता कुँवरि ने ‘सीता सागर’ तथा द्वितीय रानी राधा कुँवरि ने ‘राधा सागर’ तालाब का निर्माण कराया।
( बुंदेलखण्ड का वृहद इतिहास, पृ. 108)
दतिया नरेश इंद्रजीत के शासनकाल (1736-62 ई.) में लाला का ताल का निर्माण हुआ। इसका निर्माण किसने कराया, इसका ठोस प्रमाण नहीं है। इस संबंध में दो-दो जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं। एक जनश्रुति के अनुसार इस तालाब का निर्माण दतिया के प्रभावी मंत्री लाला रघुवंशी प्रधान ने कराया था। इसलिए यह लाला के ताल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ध्यातव्य है कि मध्यकालीन रचनाओं में वर्तमान कायस्थ जाति के लोग अधिकांशतः ‘प्रधान’ या ‘काइस्त’ शब्द का प्रयोग करते थे। लाला शब्द का प्रयोग यदा- कदा ही देखने को मिलता है।
दूसरी जनश्रुति के अनुसार इस तालाब का नाम बुन्देलखंड के लोक देवता लाला हरदौल के नाम पर है। इसके प्रमाण में दो बातें कही जाती हैं। प्रथम तो यह कि तालाब निर्माण में जो सामग्री उपयोग की गई है, वह प्राचीन वीरसिंह महल (पुराना महल की बची हुई सामग्री थी) उसका उपयोग कोई अपने नाम पर नहीं कर सकता था। दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि इसी तालाब के निकट ही लाला हरदौल का स्थान अब भी बना हुआ है और उस मुहल्ला का नाम तब से लेकर अब तक ‘हरदौलन’ मुहल्ला के नाम से चला आ रहा है।
दतिया नरेश पारीछत (1801-39 ई.) की रानी हीरा कुँवरि ने सन् 1808 ई. में एक बावड़ी का निर्माण दतिया नगर में कराया जो ‘रानी की बावड़ी’ के नाम से प्रसिद्ध है।
(बुंदेली विरासत, अक्टूबर-2015, पृ. 68)
दतिया नरेश विजय बहादुर सिंह (1839-56 ई.) ने दतिया में ‘राजा सागर’ नामक तालाब का निर्माण कराया।
दतिया नरेश भवानी सिंह (1857-1907 ई.) ने दतिया में ‘नया ताल’ का निर्माण कराया। उनकी राजमहिषी कंचन कुँवरि ने सन् 1896 ई. में एक बावड़ी का निर्माण कराया था।
(बुंदेली विरासत, अक्टूबर-2015, पृ. 67)
दतिया में स्थित ‘लक्ष्मण सागर’ के निर्माण की जनश्रुति है कि इसे लछमन सेठ नामक व्यक्ति ने बनवाया था।
दतिया नगर में इन तालाबों के अतिरिक्त रानी की बावड़ी, विहारी निवास की बावड़ी, बाबादार की बावड़ी, गनेश बावड़ी, घुड़दौड़ की बावड़ी, तिवारी की बावड़ी, किले की बावड़ी, छल्लापुरा की बावड़ी, सुरैयन की बावड़ी नामक नौ बावड़ियाँ प्रमुख रूप से विद्यमान हैं।
(बुंदेली विरासत अक्टूबर-2015, पृ. 66)
बड़ौनी
बड़ौनी ग्राम ओरछेश मधुकर शाह ने अपने पुत्र वीरसिंह देव को जागीर में दिया था। बड़ौनी जागीरदार की हैसियत से उन्होंने यहाँ एक तालाव बनवाया था। जो विद्यमान है।
(बुंदेलखण्ड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास, पृ. 117)
सेवढ़ा ‘इन्दुरखी के गौर राजवंश के सिंह पुत्तूसिंह गौर से प्राप्त एक पाण्डुलिपि के उपलब्ध पृष्ठों में वर्णन है कि – ‘मदारी का ताल’ मदारीलाल साह अगरवारे ने राजा के हुकुम सौ मुसाफरन के निस्तार कौ संवत् 1797 (1740 ई.) में बनवायौ है।’ मदारीलाल के नाम से विख्यात यह तालाब सेवढ़ा में विद्यमान है। उनके वंशज अभी सेवढ़ा में निवासरत हैं।
(डॉ. श्याम विहारी श्रीवास्तव सेवढ़ा के पास पाण्डुलिपि उपलब्ध है।)
इंदरगढ़ क्षेत्रान्तर्गत खड़उआ ग्राम में एक प्राचीन बावड़ी है। जिसका संबंध लाला हरदौल की बहिन कुँजावती से है। इसे कुँजावती की बावड़ी कहते हैं। इसके पहले खंड में चतुर्भुज भगवान विष्णु की प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
इनके अतिरिक्त दतिया जिला में अगोरा तालाब, भदेवरा, मकरारी, दुसेड़ा, परासरीन नं.-1, ललउआ, रावतपुरा, उनाव, ग्यारहनामा, ग्यारहगढ़ी, मगरौल, सिलोरी, ठाकुरपुरा, पिपरा, जिगनिया अशर ताल, पचौरा, वसई, सुनार ताल, वरघाव, चेरगारा आदि तालाब हैं। इनमें से कुछ तालाबों से सिंचाई होती है और कुछ निस्तारू तालाब हैं जिनका शरदऋतु से सूखना आरंभ हो जाता है।