दतिया छोटी रियासत होने के बाद भी अपनी स्थापना से देश की स्वाधीनता तक, अपने अस्तित्व को अक्षुण्य बनाए रखने में सफल रहा। ओरछा के राजा “वीरसिंह जू देव ने दतिया की जागीर अपने मुँझले पुत्र भगवानराव को दी। उनके 20 अक्टूबर 1626 को दतिया आने के बाद दतिया रियासत अस्तितव में आई। आरंभिक स्वरूप इसका एक मामूली गाँव जैसा ही रहा होगा। दतिया के राजा शुभकरण के पुत्र दलपतराव ने इसे नगर के रूप में विकसित किया। दलपतराव ने यहाँ “प्रतापगढ़” नामक एक विशाल दुर्ग का निर्माण कराया। वर्तमान में किला चौक पर स्थित इस दुर्ग के आसपास ही दतिया नगर विकसित हुआ।
20 अक्टूबर 1626 से लेकर देश की स्वतंत्रता तक दतिया में कुल 11 बुन्देला राजाओं ने राज किया। इन्होंने अपने शासनकाल में कला एवं संस्कृति को प्रोत्साहन दिया, इस कारण यहाँ किले और महलों के अलावा बड़ी संख्या में छत्रियाँ, तालाब, बावड़ियाँ और मंदिरों का निर्माण हुआ। दतिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना सन् 1929 ई. में घटित हुई, जब ब्रह्मलीन “पूज्यपाद श्री विभूषित स्वामी जी का दतिया आगमन हुआ। उन्होंने दतिया के दक्षिण में स्थित “वनखण्डेश्वर महादेव” को अपनी साधना स्थली बनाया। कालांतर में यहाँ “माँ भगवती पीताम्बरा” एवं “माँ भगवती धूमावती” की स्थापना हुई। पूज्यपाद स्वामी जी के तप के प्रभाव से दतिया को राष्ट्रव्यापी ख्याति मिली।
|| संदर्भ सूची ||
- ग्वालियर स्टेट गजेटियर – 1911
- श्री पीतांबरा पीठ सम्बन्धी आलेख – श्री ललिता प्रसाद शास्त्री
- ग्वालियर एवं दतिया जिले की किले एवं गढ़ियां सम्बन्धी शोध-प्रबंध – डॉ. आनंद मिश्रा
- दतिया जिला गजेटियर
- रतनगढ़, सनकुँआ सम्बन्धी आलेख – श्री बाबूलाल गोस्वामी
- दतिया राज्य की मध्य कालीन संस्कृति सम्बन्धी शोध-प्रबंध – डॉ. टी. आर. पेशवानी
- वीरसिंह जू देव महल के सम्बन्ध में आलेख – श्री बालमुकुंद भारती
- दतिया का पुरातत्व सर्वेक्षण प्रकाशक – मध्यप्रदेश पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय, भोपाल
- दतिया की चित्रकला सम्बन्धी शोध-लेख – डॉ. सुरेश तिवारी
- ‘हरदौल : बुंदेली गाथा’ पुस्तक – डॉ. सुधा गुप्ता
- गुजर्रा का शिलालेख के सम्बन्ध में आलेख – श्री महेश कुमार मिश्र ‘मधुकर’
- दतिया के प्रतापगढ़ दुर्ग सम्बन्धी आलेख – श्री प्रभु दयाल गोस्वामी
- ‘सोनागिर’ पुस्तक – श्री नवनीत कुमार जैन, प्रकाशक भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, हीराबाग सीपी टैंक, मुम्बई
- दतिया की मल्लविद्या सम्बन्धी आलेख – डॉ. शफी हिदायत कुरैशी