
बुन्देली कलम दतिया की चित्रकला
October 8, 2024
दतिया के तालाब एवं बावड़ियाँ
October 8, 2024दतिया को सबसे ज्यादा गर्व है तो अपनी माटी के लाल विश्व विजयी पहलवान गामा पर। दतिया में आज भी उनकी कई स्मृतियाँ बिखरी पड़ी है। वीरसिंह जूदेव महल में उनका अखाड़ा बताया जाता है। उड़नू की टोरिया से भी उनका सम्बन्ध है। किला चौक स्थित ‘प्रतापगढ़’ में भी आखाड़ा है जहाँ राजा भवानी सिंह गामा पहलवान को कुश्ती के इल्म सिखाते थे। उनकी हंसुली, नाल, मुदगर आदि आज भी दतिया म्युज़ियम में देखे जा सकते हैं। दतिया में पहलवानी का शौक राजा विजयबहादुर के समय आरम्भ हो गया था। ‘नोन’ पहलवान उन्हीं के समय दतिया आकर बस गए थे। राजा भवानी सिंह न केवल पहलवानी शौक था अपितु वे खुद भी अच्छे पहलवान थे। उनके समय दतिया में पहलवानी चर्म शिखर पर पहुंची। दतिया में सावन के मेले के दंगल में पेशावर, पंजाब और दूर-दूर से पहलवान आते थे। राजा दतिया के प्रश्रय के कारण कई अच्छे पहलवान दतिया आकर बस गए थे। पेशावर के ‘खैली’ पहलवान भी उनमें से एक थे।
राजा भवानीसिंह की पहल पर कश्मीर के पहलवान ‘हबीब बख्म’ तथा उनका पुत्र लाहौर का प्रसिद्ध पहलवान ‘अजीज बख्स’ भी दतिया आकर बस गए। दतिया में आकर बसे पहलवान ‘नोन’ की बेटी भी हजार दंड बैठक का अभ्यास करती थी। उसकी सहजोरी भी काफी चर्चित थी। राजा उसे अपनी बेटी की तरह मानते थे। उसकी शादी पहलवान अजीज बख्स से करा दी गई। गामा इन दोनों की संतान थे। कहते है कि उनका जन्म सन 1889 ई. में दतिया के होलीपुरा मुहल्ले में हुआ था। माता-पिता दोनों ही पहलवान होने से पहलवानी के गुर बचपन से ही इन्होंने अपनी माता-पिता से सीखे।
गामा की प्रमुख कुश्तियाँ –
- इन्दौर में अल्ली साई के साथ।
- टीकमगढ़ में, नाम याद नहीं, किसी ‘सिह’ नाम के पहलवान से।
- जूनागढ़ में रहीम पहलवान से।
- पटियाला में पीटरसन से।
- 1910 में विलायत में जैविस्को से। (गामा को एक अमरीकन मि. बैनमिन लन्दन ले गया था।) वह कुश्ती ढ़ाई घन्टे तक हुई थी और गामा ने जैविस्की को गिरा लिया था।
- विलायत में ही रोलर पहलवान से।
- 28 जून 1928 में पटियाला में पुनः जैविस्को के साथ कुश्ती ।
राजा भवानी सिंह के कृपापात्र होने से उन्हें खुराक खर्च दतिया राज्य से मिलता था। राजा साहब प्रतापगढ़ स्थित अखाड़े में उन्हें पहलवानी के दांवपेंच सिखाते थे। यह अखाड़ा दतिया किले में आज भी मौजूद है। इसकी चित्रकारी आज भी चित्रकारी के शौकीन लोगों को आकर्षित करती है। बचपन में ही इन्होंने कुश्ती लड़ने बाहर जाना आरम्भ कर दिया और लगातार सफलता से उनकी ख्याति बढ़ती गई। राजा भवानी सिंह की मृत्यु सन 1907 के बाद दतिया राज्य से उन्हें खुराक खर्च मिलना बंद हो गया।
उनकी जमीन से गुजारा न हो पाने से वे महाराज पटियाला के बुलावे पर पटियाला जाकर बस गए। गामा ने राष्ट्रीय अन्तराष्ट्रीय स्तर की 50 से अधिक कुश्तियाँ लड़ीं और सभी में विजय प्राप्त की। उन्हें “विश्वविजेता” और ” रुस्तम-ए- हिन्द” की पदवी प्राप्त हुई। देश के विभाजन के समय वे पाकिस्तान चले गये और लाहौर में बस गए जहाँ सन् 1960 ई. में उनकी मृत्यु हो गई। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ की पत्नी कुलसुम नवाज़ गामा की पौती थी। कुलसुम नवाज़ ने लाहौर विश्वविद्यालय से उर्दू में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। वे लाहौर से सांसद एवं पाकिस्तानी प्यूपिल्स पार्टी की अध्यक्ष रही। कैंसर की बीमारी के चलते उनकी मौत हो गई। कहते है कि गामा सन् 1946 ई. में दतिया आखिर बार आये थे। गामा और उनका परिवार लाहौर जाकर बस गया, पर उनकी यादें आज भी दतिया में चर्चा में रहतीं हैं। कहते हैं गामा को अपने दतिया से बहुत लगाव था।