सागर
January 30, 2025नरसिंहपुर
January 31, 2025दमोह जिले के अधिकांश भू-भाग में कलचुरी एवं गोंडों का शासन प्राचीनकाल में रहा है। गोंडों द्वारा निर्मित कुछ प्राचीन सरोवर जिले में अब भी विद्यमान हैं। वैसे इस जिले में तालाबों की संख्या अधिक नहीं है।
दमोह
दमोह नगर का सबसे प्राचीन एवं विशाल ‘फुटेरा ताल’ है। यह गोंड शासकों की एक उत्तम कृति है। ज्ञातव्य है कि गोंड साम्राज्य में निर्मित तालाब वर्षा जल को सहेजने और झरनों से प्रवाहित जल को संग्रहीत करने की तकनीक पर आधारित थे। इन तालाबों का जल भराव क्षेत्र बहुत अधिक होता था। तालाब निर्माण करने वाले किसानों को बिना मूल्य पानी दिया जाता था। इसी प्रकार तालाबों की देखभाल करने वालों तथा तालाबों की मरम्मत करने वालों को भी मुफ्त में पानी दिया जाता था।
दमोह नगर में फुटेरा नाम का विशाल तालाब है। पूर्व में इस तालाब का नाम ‘देवी तालाब’ था। 1878 ई. में फुटेरा ग्राम के मुंशी रामप्रसाद एवं राजाराम ने अपने पितामह मुंशी हीरालाल एवं पिता शिव प्रसाद की स्मृति में इस तालाब पर प्रथम पक्का घाट बनवाया था। तभी से यह फुटेरा ताल कहलाने लगा।
पुरैना तालाब
पुरैना तालाब का निर्माण मुस्लिम शासनकाल में हुआ माना जाता है। पुरैना तालाब के निर्माण के संबंध में श्री विनोद कुमार श्रीवास्तव का मत है कि – ‘पुरैना तालाब दमोह का सबसे प्राचीन तालाब था। जिसे करीब 1000 वर्ष पहले बनवाया गया था। उसका वर्षा का अतिरिक्त जल एक नाली के द्वारा ‘दीवान जी की तलैया’ जाता था। उस तलैया का अतिरिक्त पानी पास की बनी ‘कैदों की तलैया’ में एकत्रित होता था। इन तालाबों से भूगर्भीय एक सुरंगनुमा नाली दमोह के किले के अंदर बने कुएँ को सदा पानी से प्लावित रखती थी। तहसीलदार मुंशी तखतसिंह सन् 1880 तक दमोह जिले में कार्यरत रहे। उनके समय में ‘बेला ताल’ आदि का निर्माण हुआ।’
दीवानजी की तलैया का नाम तत्कालीन मराठा प्रबंधक बालाजी दीवान के नाम के आधार पर पड़ा है। ज्ञातव्य है कि बालाजी दीवान की मृत्यु होने पर उनकी पत्नी इसी तलैया के बंधान पर सती हुई थीं। नगर की बाह्य सीमा पर ‘बेला ताल’ स्थित है। इसके अतिरिक्त दमोह-जबलपुर मार्ग पर एक ‘बड़ा तालाब’ भी है। तालाब के मध्य में एक द्वीप है, जो एक सँकरे रास्ते से तट से जुड़ा हुआ है। जहाँ से प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाया जा सकता है।
बांदकपुर
बांदकपुर की गणना बुंदेलखंड के एक प्राचीन तीर्थ के रूप में होती है। दमोह के प्रबंधक (जिनका उल्लेख ‘दीवान की तलैया’ के संदर्भ में पूर्व में किया जा चुका है) बालाजी दीवान को सन् 1811 ई. भगवान जागेश्वर शिव ने स्वप्न में दर्शन देकर बांदकपुर में प्रगट होने की सूचना दी थी। बाद में यहाँ महादेवजी की प्रतिमा पाये जाने पर शिव मंदिर, पार्वती मंदिर एवं नंदी मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर परिसर में ही एक प्राचीन बावड़ी है जिसे ‘अमराती कुआँ कहा जाता है। इसे अमृतकुंड भी कहा जाता है।
बटियागढ़
बटियागढ़ मुसलमानों के अधीन परगना मुख्यालय था तथा बाद में यह मराठा आमिल का निवास रहा। इस स्थान पर कुछ शिलालेख मिले हैं। एक संस्कृत शिलालेखानुसार संवत् 1385 (1328 ई.) में सुल्तान मुहम्मद के समय जीव-जंतुओं के आश्रय हेतु एक गोमट, एक बावड़ी और एक बगीचा लगाने का उल्लेख है।
चौपरा
चौपरा नाम से ही इस ग्राम में जलाशय होने का बोध होता है।
बाड़ी कनोदा
बाड़ी कनोदा में चंदेलों द्वारा निर्मित एक बड़ा तालाब है।
किशुनगंज
किशुनगंज ग्राम में मराठा शासन काल में निर्मित दो तालाब हैं। इनका निर्माण बालकृष्ण राव करमकर परिवार ने कराया था। तालाबों के चारों ओर पक्के घाट बने थे।
कुण्डलपुर
कुण्डलपुर दिगम्बर जैन समाज का प्राचीन एवं पावन तीर्थस्थल है। यहाँ वर्द्धमान सागर नाम का विशाल सरोवर है, जिसके तट पर 18 जैन मंदिर सुशोभित हैं। यहाँ एक दूसरा तालाब भी है, जिसे गोंड शासनकाल में निर्मित माना जाता है। कहा जाता है कि पन्ना नरेश छत्रसाल ने यहाँ तालाबों की मरम्मत करवाई थी।
रनेह
रनेह ग्राम में एक अत्यन्त प्राचीन कुआँ है। इसके अतिरिक्त यहाँ अनेक तालाब और कुएँ हैं, किंतु ग्रीष्म ऋतु में तालाब और कुआँ सभी सूख जाते हैं और पानी की त्राहि-त्राहि मच जाती है। इसीलिए यहाँ एक कहावत है कि ‘बावन कुआँ, चौरासी ताल, तउ रनेह में पानी को काल।’
सतसुमा
सतसुमा यहाँ की एक समीपस्थ पहाड़ी से गर्म पानी का एक झरना झरता है, जो सोनार नदी में जाकर मिलता है, जिससे ग्राम के निकट एक गहरा कुंड बन गया है। सतसुमा गाँव की यह एक प्राकृतिक जल संरचना है।
सिंगोरगढ़
सिंगोरगढ़ नामक दुर्ग एक पहाड़ी पर स्थित है। एक पौराणिक आख्यान के अनुसार इस किले का निर्माण राजा बेन बसौर ने कराया था। एक मत के अनुसार इसका निर्माण महोबा के चंदेल राजा द्वारा कराया गया था। पहाड़ी की चोटी पर स्थित एक पाषाण स्तंभ पर अंकित शिलालेखानुसार इसकी स्थापना संवत् 1364 (सन् 1307 ई.) में विजयादशमी के दिन की गई थी। विजयादशमी के अवसर पर निर्मित होने के कारण इसे ‘विजय सागर’ नाम दिया गया। आमतौर पर कहा जाता है कि पहले सिंगौरगढ़ के पश्चिम में बहुत बड़े क्षेत्र को घेरे हुए एक झील थी, जिसमें अब 28 ग्राम बसे हुए हैं।
बेचई, बहरिया, थांगरी, चिरई पानी, जमनेरा, देवरी, बंदर कोला बारपाती, कचौरा ताल, मातनताल, सगरा ताल, गडालू तलैया, परसदिया तालाब भी दमोह जिले में स्थित हैं।
इनके अतिरिक्त गढ़ाघाट, पटना, माला-रिछाई, चिखपानी, हरदुआ, धनगोर, छोटी देवरी, भाट खमरिया, हरदुआ, अलग सागर, केवलारी, फुटेरा, नौनपानी, वारपाती, तेजगढ़, जवेरा, झलेहरी घाना, पिपरिया जुगराज, किल्लई, पिपरिया रामनाथ, दारोली, बरेट, सेमता मड़िया, दूमर, तेजगढ़, पथरिया बरात, कनौरा, नोहटा आदि दमोह जिले में स्थित तालाबों से सिंचाई भी होती है।