
वीर सिंह जू देव महल
October 8, 2024
अशोक का शिलालेख, गुजर्रा
October 8, 2024जैन धर्म में वर्तमान अवसर्पिणी के आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु के समवशरण की रचना और नंगानंग कुमारों सहित साढ़े पाँच करोड़ मुनियों की निर्वाणस्थली के रूप में प्रतिष्ठित प्राचीन “सुवर्णगिरी” वर्तमान में सिद्धक्षेत्र “सोनागिर” के नाम से विश्वविख्यात है। यह पर्वत तीर्थंकर चन्द्रप्रभ के समवशरण और साढ़े पाँच करोड़ मुनियों की दिव्य मोक्ष स्थली है। पर्वत के शिखर पर तीर्थंकर चन्द्रप्रभु की 13वीं शती ई. की एक विशालकाय प्रतिमा और उसके समीप स्थित नंगानंग कुमारों की छतरी पर्वत के मूल देवालय है। 13वीं शती ई. के उपरान्त पर्वत पर शनैः शनैः 77 मंदिरों और पर्वत तलहटी में कुल 27 मंदिरों का निर्माण हुआ।
मध्यप्रदेश के दतिया जिले के अन्तर्गत सिनावल-सोनागिर ग्राम जिला मुख्यालय से लगभग 15 कि.मी. की दूरी पर और संभागीय मुख्यालय ग्वालियर से लगभग 75 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। महाजनपदकाल में यह क्षेत्र चेदि जनपद के अन्तर्गत रहा होगा। मौर्य राजवंश के समय यह क्षेत्र उनके अधीन रहा था। मौर्यो के उपरान्त यह क्षेत्र क्रमशः शुंग, कुषाण, नाग, गुप्त, हूण, पुष्यभूति राजवंश के अधीन रहा। पूर्व मध्यकाल में यह क्षेत्र क्रमशः गुर्जर प्रतिहार, कच्छपघात, तोमर राजवंश के अन्तर्गत रहा था। आधुनिक काल में यह क्षेत्र सिंधिया, तदुपरान्त ओरछा की बुन्देल रियासत और तत्पश्चात् दतिया रियासत के अन्तर्गत रहा था। बुन्देलखण्ड की उत्तरी रियासतों के जिला गजेटियर में सोनगिर का उल्लेख संक्षिप्त रूप में हुआ है। इस गजेटियर में सोनागिर को “The Hill of Rest” कहा गया है।
माइकेल डी. विलिस ने अपने ग्रन्थ ” इन्सक्रिप्शनस् ऑफ गोपक्षेत्र” में सोनगिर के मूर्तिलेखों एवं अभिलेखों का सारगर्भित विवरण सम्मिलित किया है। रमानाथ मिश्र ने गोपादि शैली के परिप्रेक्ष्य में सोनागिर के मंदिर एवं मूर्तियों का महत्व इंगित किया है। नरेश कुमार पाठक ने अपने ग्रन्थ “मध्यप्रदेश के जैन शिल्प” में सोनगिर का अत्यन्त संक्षिप्त परिचयात्मक विवरण दिया है। मूर्तिशिल्प की दृष्टि से सोनागिर की ग्रेनाइट पाषाण पर बनी 18 वीं 19 वीं शती ई की प्रतिमाएँ अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये गोपाद्री मूर्तिशैली के अवसान काल के उल्लेखनीय उदाहरण है और गोपाद्री क्षेत्र में मूर्तियों के निर्माण की अनवरत् सूचना देती है। सोनगिर में पर्वतराज पर स्थित प्रतिमाएँ बलुआ पाषाण, संगमरमर पाषाण, कृष्ण वर्ण के पाषाण और ग्रेनाइट की बनी हैं।
मंदिरों की वास्तु संरचना में एक गर्भगृह और एक अर्द्धमण्डप का विधान हुआ है। इस श्रेणी के मंदिरों में या तो गर्भगृह के तीनों ओर खुले या बंद प्रदक्षिणा पथ का अथवा सामान्य रूप में मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ बना हुआ है। इन मंदिरों में गर्भगृह के ऊपर मंदिर के आकार के अनुपात में परवर्ती काल के रेखा नागर शैली के शिखर शोभायमान है। मंदिरों में एकाधिक गर्भगृह होने पर तद्नुरूप शिखरों का प्रावधान किया गया है।
सोनागिर में जैन तीर्थंकरों के मंदिर, कैलाश पर्वत, सम्वेद शिखर के अलावा निम्न स्थल दर्शनीय है:-
ज्ञान गुदड़ी – मंदिर क्र. 34 के सम्मुख चट्टान के एक चबूतरानुमा स्थल को” ज्ञान गुदड़ी” कहा जाता है।
नंदीश्वर द्वीप मंदिर – इस मंदिर के सामने एक विशाल नंदीश्वर द्वीप रचना निर्मित की गई हैं नंदीश्वर द्वीप के चारों ओर गोलाई में प्रदक्षिणा पथ बना हुआ है।
मानस्तम्भ – मंदिर क्र 57 के मुख्य प्रवेश-द्वार के सम्मुख प्रांगण में लम्बाई 43 फुट ऊँचा एक विशाल मानस्तम्भ बना हुआ है।
श्रुतस्कन्ध यंत्र – मानस्तम्भ के समीप 5 फुट 3 इंच माप का वर्गाकार रुप में एक श्रुत स्कन्ध यंत्र खड़ा हुआ है। इसकी पीठिका पर उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार इसका निर्माण आचार्य 108 श्री विमलसागरजी महाराज एवं उपाध्याय श्री भरतसागरजी महाराज के सानिध्य में 1990ई. को हुआ।
नारियल कुण्ड, बाजनी शिला एवं गुफा – मंदिर क 69 के समीप एक ओर नारियल कुण्ड और दूसरी ओर बाजनी शिला है। नारियल कुण्ड के बारे में कथा है कि यहाँ एक मुनिराज विराजमान थे। एक दर्शनार्थी के बालक को प्यास से आतुर देख मुनिराज ने यात्री से नारियल फोड़ने को कहा, जिसे फोड़ते ही नारियल के आकार का कुण्ड बन गया और उसमें जल उमड़ आया। विभिन्न विशिष्टताओं के कारण तथा संश्लिष्ट सौन्दर्य और दिव्याकर्षण से सुवर्णगिरी भारत-प्रसिद्ध है। प्रतिवर्ष लाखों यात्री और सैलानी इसे देखने आते है।