गुप्त एवं प्रतिहार कालीन जल संरचनाएँ
January 25, 2025दाँगी कालीन जल संरचनाएँ
January 25, 2025इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि 9वीं से 12वीं शताब्दी के बीच कलचुरी शासकों ने तालाब, बावड़ियाँ और कुएँ खुदवाने में विशेष रुचि ली थी। (‘चौमासा’ वर्ष 23, अंक 71, पृ. 233)
कलचुरी शासन में तो जल संचयन संरक्षण हेतु पृथक से एक अधिकारी नियुक्त किया जाता था। यथा –
‘कलचुरी शासन पद्धति का बोध यशकर्ण के एक दान पत्र से होता है। इसमें दिये गये अधिकारियों में चतुराघाट विशुद्धः सजल स्थलः नाम भी अंकित है, जो जल प्रबंधन व्यवस्था हेतु उत्तरदायी थे।’ (नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष 44 अंक 1, पृ. 41)
बुन्देलखंड में कलचुरियों के दो प्रमुख केंद्र थे। प्रथम पूर्वी बुन्देलखंड में त्रिपुरी और द्वितीय दक्षिणी-पश्चिमी बुन्देलखंड में चंदेरी।
‘केयूरवर्मन ने विलहरी में बड़ा तालाब, छोटा तालाब एवं धावना तालाब का निर्माण कराया था।’ (जबलपुर जिला गजेटियर, पृ. 612)
‘उसके पुत्र लक्ष्मण देव ने विलहरी में ही लक्ष्मण सागर सरोवर बनवाया था।’ (बुंदेलखंड का वृहद इतिहास, पृ. 74)
‘मदनमहल से गढ़ा मार्ग पर स्थित गंगा सागर तालाब का निर्माण कलचुरी राजा गांगेय देव ने कराया था। मदनसिंह और उनके बाद हृदयशाह ने इसका जीर्णोद्धार कराया।’ (मध्यप्रदेश संदेश, पृ. 12)
‘कलचुरियों की राजधानी रही त्रिपुरी (तेवर) में प्राचीन बावड़ी के भग्नावशेष मिले हैं। पत्थरों के बंधानवाली यह बावड़ी स्वस्तिकाकार है। इसके चारों ओर पार्श्वों में प्रत्येक के मध्य में कलचुरियों के शिलालेख लगे थे। यहाँ की बावड़ी को कलचुरी राजा गांगेयदेव और राजाकर्ण के काल में निर्मित होना मानते हैं। यहाँ 12वीं शताब्दी का कलचुरी कालीन बाला सागर नाम का बड़ा तालाब है।’ (वही, पृष्ठ 9)
‘कारी तलाई-इस स्थान का नाम स्थानीय बड़े तालाब के श्यामवर्ण पानी की सतह होने के कारण है, जो कलचुरी नरेश कर्ण देव ने बनवाया था।’ (जबलपुर जिला गजेटियर, पृ. 630)
‘मझौली का नरोरा तालाब 11वीं-12वीं शताब्दी कलचुरी कालीन है।’ (वही, पृष्ठ 636) ‘सिमरा का बराती तालाब दशवीं शताब्दी में कलचुरी नरेश कर्णदेव ने बनवाया था।’ (वही, पृष्ठ 369-40)
‘पनागर का बलेहा तालाब कलचुरी कालीन है।’ (वही, पृष्ठ 636)
‘पिठोरिया का बड़ा तालाब भी कलचुरीकालीन है। कलचुरी कालीन संवत् 993 (936 ई.) का एक शिलालेख यहाँ लगा है। बाँदकपुर में कौकल्ल देव ने जागेश्वर की स्थापना कराई थी। मंदिर परिसर में स्थित कुआँ जिसे अमृत कुण्ड कहा जाता है। कलचुरी कालीन है।’ (सागर जिला गजेटियर, पृ. 523)
‘नौहटा का तालाब – नौहटा, दमोह-जबलपुर के बस मार्ग पर कलचुरी कालीन प्राचीन सांस्कृतिक स्थल है। यहाँ कलचुरीकालीन धार्मिक मंदिर हैं। यहाँ का घाँगरी (गराघाट) तालाब प्रसिद्ध तालाब है।’ (बुंदेलखंड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास, पृष्ठ 85)