यह प्राचीन दुर्ग सिंध नदी के तट पर मार तोड़ का बना है। इस सुदृढ़ किले को मुगल इतिहासकारों ने ‘सरुआकिला’ लिखा है। महमूद गजनवी ने चंडराय का पीछा करते हुए कन्हरगढ़ दुर्ग को घेरा था, परन्तु उसे निराश होकर लौट जाना पड़ा था। सेंवढा के महाराजा पृथ्वीसिंह’ रसनिधि’ ने इस दुर्ग में सुन्दर स्थान बनवाये थे। श्री नन्दनन्दनजी का मन्दिर, फूलबाग, अन्तर्गृह आदि देखने योग्य हैं। 1809 ई. में दतिया के राजा शत्रुजीत ने इसी दुर्ग में ग्वालियर के महादजी सिंधिया की विधवा रानियों को आश्रय दिया था। इसको लेकर दोनों के मध्य हुये युद्ध में महाराजा शत्रुजीत ने प्राणों की आहुति देकर उनके आश्रय में पहुँची विधवाओं की रक्षा की थी। सेवढ़ा सन् 1948 तक दतिया रियासत की ग्रीष्म कालीन राजधानी के रूप में रहा। अब तहसील का सदर मुकाम है। सिंध नदी के जलप्रपात के पश्चिम में सिंध तट पर ही सेवढ़ा का ऐतिहासिक किला है मिट्टी के टीले पर बना यहदुर्ग बनावट तथा मजबूती के लिए प्रसिद्ध है।
दुर्ग के तीनों कोटों की 34 फीट ऊँची प्राचीरें चूने और पत्थर से बनी हैं। चारों ओर ऊँची खाई है नदी की ओर एक किनारे पर राजा का निवास स्थान लंहरबुर्ज है। द्वितीय कोट सुरक्षा की दृष्टि से अधिक महत्व का और मारतोड़ का बना है। तीसरा कोट कुछ ऊँचाई पर है। इस कोट की बनावट हाथी की कनपटी के आकार की है। प्रत्येक कोट की प्राचीरों में थोड़े-थोड़े फासले से बने बुर्ज दूर से देखने में ऐसे लगते है जैसे भूतल पर एक बड़ा कठला फैला हो और उसमें गोल-गोल ताबीज पिरोये हों। बुर्जी पर बड़ी-बड़ी तोपें रखी जाती थी। रतन हजारा के रचयिता श्रृंगारी कवि राजा पृथ्वीसिंह रसनिधि के आराध्य देव नन्दनन्दन जी का मंदिर और उनका महल तीसरे कोट में दर्शनीय है। सुप्रसिद्धि दार्शनिक कवि अक्षर अनन्य इसी किले में राजा पृथ्वीसिंह को ज्ञानोपदेश देते थे। प्राचीन ग्रन्थों में इस किले का नाम किन्नरगढ़ तथा कन्हरगढ़ मिलता है। सेवढ़ा, दतिया से 65 कि.मी. एवं ग्वालियर से 80 कि.मी. दूर स्थित है।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।