अशोकनगर
January 31, 2025झाँसी
February 3, 2025तालाबों और बाँधों की दृष्टि से ललितपुर एक सम्पन्न जिला है।
बार
वीरसिंह देव प्रथम को जहांगीर द्वारा ओरछा का राज्य दिये जाने के पश्चात् तत्कालीन मुगल सम्राट जहाँगीर ने ओरछा नरेश रामशाह को सन् 1609 ई. में नौ लाख वार्षिक की जागीर के रूप में बार दिया था। रामशाह ने यहाँ अपने नाम पर ‘रामशाह सागर’ का निर्माण कराया था। इस तालाब का भराव क्षेत्र 130 एकड़ है। बाँध के पीछे केतकी का सुन्दर बगीचा लगवाया था, जिसके मात्र चिन्ह ही दिखाई देते हैं। तालाब की सीढ़ियों का संयोजन कलात्मक रूप से किया गया है।
बानपुर
बानपुर में चंदेलकालीन दो तालाब हैं। एक बड़ा तालाब (इसे गनेश तालाब भी कहा जाने लगा) है। दूसरा लुहरा (अर्थात् छोटा तालाब)। दोनों तालाब चंदेलकालीन हैं। बड़ा तालाब के आगे गनेशपुरा नामक बस्ती में बाईस भुजी दुर्लभ प्रतिमा प्रतिष्ठित है। बानपुर एक अति प्राचीन गाँव है, जहाँ अनेक प्राचीन स्थानों के ध्वंसावशेष विद्यमान हैं।
बाँसी
बाँसी में दो तालाब हैं। पहला तालाब चंदेलकालीन है, जो बहुत बड़ा है। दूसरा तालाब चंदेलकालीन तालाब की तुलना में बहुत छोटा है। इसका निर्माण सन् 1650 ई. में यहाँ के जागीरदार कृष्णराव बुन्देला ने करवाया था।
चाँदपुर
चाँदपुर एक प्राचीन ग्राम है, जो पुरासंपदा हेतु विशेष रूप से जाना जाता है। यहाँ अनेक हिन्दू एवं जैन प्राचीन मंदिरों के ध्वंसावशेष विद्यमान हैं। चंदेलकालीन एक बड़ा तालाब है, जिसके बाँध के ऊपर शिव एवं वाराह के मंदिर विद्यमान हैं।
धौर्रा
धौर्रा मड़ावरा के निकट एक प्राचीन ग्राम है। यहाँ एक चंदेलकालीन विशाल तालाब है जो 200 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
दूधई
दूधई एक प्राचीन चंदेलकालीन ग्राम है। चंदेल शासक यशोवर्मन के समय निर्मित एक विशाल तालाब यहाँ विद्यमान है, जिसे ‘राम सागर’ कहा जाता है। तालाब के पीछे की ओर अनेक चोपरा (वर्गाकार कुआँ) है। यह सदैव स्वच्छ जल से परिपूर्ण रहते हैं।
जखौरा
जखौरा यहाँ एक प्राचीन चंदेलकालीन बड़ा तालाब विद्यमान है।
ललितपुर
ललितपुर यह जिला का मुख्यालय है। इसमें ‘ललित सागर’ नामक तालाब है। कहा जाता है कि दक्षिण भारतीय नरेश सुमेर सिंह ने यहाँ अपनी रानी ललिता के नाम पर तालाब का निर्माण कराया था।
ललितपुर नगर की सीमा से लगा हुआ ‘गोविन्द सागर’ नामक एक विशाल बाँध है। इसका निर्माण उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. गोविन्द बल्लभ पंत के समय में हुआ था। इसी कारण सहजाद नदी को रोककर बनाया गया यह बाँध ‘गोविन्द सागर’ नाम से प्रसिद्ध है।
मदनपुर
चंदेल नरेश मदन वर्मन ने इस ग्राम की स्थापना की थी। यहाँ उसी का बनवाया हुआ ‘मदन सागर’ नामक एक विशाल तालाब है जिसका फैलाव 75 एकड़ में है।
मड़ावरा
मराठा शासनकाल में मोराजी नामक कामदार यहाँ कार्यरत थे। उन्होंने यहाँ एक दुर्ग तथा एक सुंदर तालाब का निर्माण कराया था। इसका भराव क्षेत्र 27 एकड़ है। ध्यातव्य है कि इसी मड़ावरा के तालाब से ही जमडार नदी निकलती है, जिसके तट पर बुंदेलखंड का प्रसिद्ध कुंडेश्वर धाम स्थापित है।
महरौनी
यह तहसील का मुख्यालय है। इसे चंदेरी नरेश मानसिंह बुन्देला ने सन् 1750 ई. में बसाया था तथा जन निस्तार हेतु यहाँ एक तालाब का निर्माण कराया था, जो ‘नैनसुख सागर’ नाम से जाना जाता है। धीरे-धीरे इसका अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है।
पवा
इसे एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि यहाँ सिद्धों की पहाड़ी पर जैन मुनि स्वर्णभद्र जी को निर्वाण प्राप्त हुआ था। यहाँ चंदेलकालीन दो बड़े तालाब हैं।
माताटीला बाँध
बेतवा नदी को बाँधकर इसका निर्माण तालबेहट नगर से 10 कि.मी. की दूरी पर किया गया है। इससे विद्युत उत्पादन के साथ ही साथ उ.प्र. एवं म.प्र. में स्थित भूमि की सिंचाई भी होती है।
रजवाहा
ग्राम में चंदेलकालीन निस्तारी तालाब है, जो कमल पुष्पों से परिपूर्ण होने के कारण मनोहारी है।
थनवारा
थनवारा ग्राम में चंदेलकालीन एक सुंदर तालाब विद्यमान है।
तालबेहट
तालबेहट कहा जाता है कि यह गोंडकालीन तालाब है। गोंडी भाषा में झील का ताल तथा बीहट का अर्थ ग्राम होता है। अर्थात् तालाब का ग्राम- ‘तालबेहट’। इसे ‘मानसरोवर’ के नाम से जाना जाता है। चंदेरी नरेश भारतशाह ने तालबेहट पर अधिकार कर लिया था। उन्होंने इस तालाब की मरम्मत कराई तथा यहाँ ‘भरतगढ़’ नाम से एक विशाल दुर्ग का निर्माण कराया था।
रक्शा
रक्शा ग्राम में चंदेलकालीन तालाब है।
सौरई
सौरई ग्राम में स्थित ध्वस्त दुर्ग के पश्चिमी-दक्षिणी दरवाजे के सामने पहाड़ी के नीचे एक फूटा हुआ छोटा तालाब है। इसकी मरम्मत कर इसे उपयोगी बनाया जा सकता है।
उदयपुरा
यहाँ बुन्देला शासनकालीन एक तालाब विद्यमान है।
उपर्युक्त तालाबों के अतिरिक्त ललितपुर जिले में गौना, गजोरा, कुआँ गाँव, बिजैपुर, समोगढ़, पनारी, बिल्ला, पिपरई, बनगुवाँ, बंट आदि ग्रामों में भी तालाब विद्यमान हैं।