
सिंचाई के साधन तथा विद्युत सुविधाएं
September 16, 2024
खनिज-सम्पदा
September 16, 2024जनपद में रहने वाले लोगों का मुख्य धन्धा खेती है, प्रायः सभी जाति के लोग खेती करते हैं। पहले लोग पुराने ढंग से खेती करते थे एवं केवल अपनी आवश्यकता के अनुसार ही खेती बाड़ी करते थे तथा प्रायः सभी प्रकार की चीजें पैदा कर लेते थे। उस समय सिंचाई नये-नये बीजों एवं रासायनिक खादों की कमी थी।
आज खेती करने के तरीकों में तेजी से सुधार हुआ है तथा आज खेती के लिए आधुनिक हल उन्नत किस्म के बीज, रासायनिक खादें सिंचाई के नये-नये साधन, एवं ट्रेक्टर, थ्रेसर, हारवेस्टर,बिजली के पम्प डीजल पम्प एवं नये-नये साधन का नित्यप्रति प्रयोग बढ़ता जा रहा है और खेती व्यवसाय के रूप में की जाने लगी है।
जैसा कि आप पढ़ चुके है कि हमारा जनपद उत्तर प्रदेश का दक्षिणी पठारी भाग है। यहाँ प्रायः मारभूमि, कावर भूमि राकड़ भूमि तथा पडुवा भूमि पायी जाती है।
मारभूमि
यह भूमि काली तथा उपजाऊ होती है इसमें धान, गेहूँ, चना, अलसी, मसूर, मटर, तथा सोयाबीन प्रमुख रूप से होती है। यह भूमि महरौनी एवं विरधा विकास खण्ड के कुछ हिस्सों में है।
काबर भूमि
कावर भूमि जनपद के पश्चिम में राजघाट और जाखलौन के बीच पायी जाती है, इस भूमि हमें गेहूँ, चना, धान, अलसी, सोयाबीन की उपज अच्छी होती है।
राकड़ भूमि
राकड़ भूमि ककरीली, पथरीली तथा कम उपजाऊ होती है। सिंचाई, खाद एवं उन्नत् बीजों द्वारा उपजाऊ बनाया जा सकता है। जनपद के अधिकांश भागों में राकड़ भूमि है। इस भूमि में उड़द मूँग, तिल, मक्का, ज्वार, अलसी उगाये जाते हैं।
पडुवा भूमि
यह भूमि, बासी नगर के आसपास है। इस भूमि में उड़द, मूँग, तिल, मक्का, अलसी, मसूर, सरसों ‘मटर’, सोयाबीन, चना आदि पैदा होते हैं।
प्रमुख उपजें
जनपद का सम्पूर्ण क्षेत्रफल 5,06,953 हेक्टेयर है, जिसमें 2,22,700 हैक्टेयर भूमि पर ही खेती होती है। इस में शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल 1,43,366 हेक्टेयर है। इस प्रकार लगभग एक तिहाई भूमि पर ही खेती होती है। इस भूमि के अलावा सिंचाई व अन्य साधनों के द्वारा दो लाख दस हजार हेक्टेयर बेकार पड़ी भूमि को कृषि योग्य बनाये जाने हेतु प्रयास जारी है। अपने जनपद में ऋतु में अनुसार तीन प्रमुख फसलें है-
खरीफ की फसल
इस फसल को ‘खरीफ’ या ‘सियारी’ कहते है। वर्षा ऋतु आरम्भ होते ही बीज बो दिए जाते है, और जाड़ा आरम्भ होने के पहले फसलें काट ली जाती हैं। खरीफ की फसल में कोदों, कुटकी ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, सोयाबीन, तिल, मूँग, अरहर, अदरक, मूँगफली आदि को बोया जाता है। यह फसल जुलाई में बोयी जाती है एवं सितम्बर-अक्टूबर में काटी जाती है, किन्तु अरहर वार्षिक फसल है और रबी की फसल के साथ कटती है। वर्तमान में इसकी भी नई किस्म विकसित हुई है जो नब्बे दिन में तैयार हो जाती है।
रबी की फसल
इसको ‘रबी या उन्हारी की फसल कहते है। यह फसल जाड़े के आरम्भ में अक्टूबर-नवम्बर में बोयी जाती है एवं मार्च अप्रैल में काटी जाती है। इस समय वर्षा कम होती है इसलिए सिंचाई द्वारा पानी पहुँचाया जाता है, इस फसल में गेहूँ, चना, अलसी, मसूर, राई, मटर इत्यादि शामिल है।
जायद की फसल
यह फसल जायद के नाम से भी जानी जाती है, इसमें सठिया (धान), मूँग उड़द आदि बोया जाता है। यह अप्रैल मई के महीनों में बोई जाती है और जून के अंत में कटती है। इस जिले में फल और सब्जियाँ बहुत तादाद में पैदा की जाने लगी है। सब्जियाँ प्रमुख रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सभी जगह पैदा की जाती है। जनपद में पाली एवं बानपुर में पान भी पैदा होता है।
वनोपजें
जनपद में जामुन, तेंदू पत्ता, कत्था, बाँस, महुआ, अचार, आम यहाँ पर्याप्त होता है एवं गोंद, लाख व जड़ी-बूटियाँ भी पर्याप्त मात्रा में होते है।