पुस्तक - सांस्कृतिक बुन्देलखण्ड - अयोध्या प्रसाद गुप्त 'कुमुद'
भगवान सूर्य सृष्टि के आदिकाल से ही प्रत्यक्ष देवता के रुप में पूजित हैं इसीलिये उन्हें ‘आदिदेव’ कहा गया है। वह प्रकाश, उल्लास, आरोग्य और तत्वज्ञान के स्रोत हैं। वैदिक साहित्य में उन्हें जीवनशक्तिप्रदायक तथा सर्वरोग विनाशक कहा गया है। ‘तमसो मा ज्योर्तिगमय’ का संदेश सूर्य से ही अनुप्राणित है। इनकी उपासना भारत में ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में विभिन्न नामों से की जाती है। विश्व में अनुमानतः ईसा से 6 हजार वर्ष पूर्व से लेकर 1400 ई. तक सूर्योपासना के प्रमाण मिलते हैं। विश्व का प्राचीन दर्शन सौर दर्शन ही है। ईरानियों के मित्र और ग्रीकों के हेलियस, मिस्रियों के ‘रा’ तातारियों के ‘फ्लोरस’, प्राचीन पेरु के फुलेस उत्तरी अमेरिका के रैड़ इंडियनों के एतना, अफ्रीका के तिले चीन के उ.ची 2 तथा जापान के इज्जागी’ सूर्य के नाम ही थे और वे सब इन नामों से सूर्य उपासना करते थे। यूनान का सम्राट सिकन्दर सूर्य उपासक था।’ प्राचीन भारत में पंच देवायतन अथवा पंचदेवोपासना प्रचलित थी। इन पंचदेवों में सूर्य के साथ विष्णु, शिव, गणेश तथा शक्ति की पूजा होती थी। इनमें एक प्रमुख देवता को केन्द्र में रखकर शेष को चार कोणों पर प्रतिष्ठित किया जाता था। इनके क्रम का निश्चित विधान है। इसी आधार पर पंचायतन मन्दिर शैली भी विकसित हुई। भारत में हिन्दू धर्म के साथ बौद्ध एवं जैन संप्रदायों में भी सूर्य-पूजा के प्रमाण मिलते हैं इस व्यापकता के कारण भारतीय सूर्योपासना इतनी प्रबल हुई कि उसका प्रचार इस देश के बाहर अफगानिस्तान, नेपाल, वर्मा, श्याम, कम्बोडिया, जावा-सुमात्रा आदि देशों में हुआ। इन देशों में सुरक्षित मूर्ति अवशेष आज भी इसका उद्घोष करते हैं। सूर्य के नाम पर सूर्यवर्मा आदि नाम विदेशों में प्रचलित हुये। संपूर्ण विश्व में रविवार सूर्य का दिन माना जाता है।
प्रतिमा विज्ञान के विकास के पूर्व ‘प्रतीक पूजा’ का विधान था। सूर्य की प्रतीक उपासना में चक्र अथवा कमल की उपासना की जाती थी। इन प्रतीकों पर आधारित सूर्य-उपासना के मंदिर भारत में ही नहीं विदेशों में भी मिलते हैं। दक्षिण अमेरिका के प्राचीन पेरु में एक ऐसे सूर्य मन्दिर होने का प्रमाण मिलता है। जहॉं ‘सूर्यचक्र’ प्रतिष्ठित है। मूर्त रुप में सूर्य- प्रतिमा का प्रथम प्रमाण बोधगया की कला में है। भान्जा की बौद्ध गुफा में भी सूर्यप्रतिमा बोधगया की परंपरा में हैं। इनका काल ईसापूर्व प्रथमशती है। इस आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है कि ईसा की प्रथमशती पूर्व तक सूर्य की प्रतीक उपासना का विधान था। कालान्तर में प्रतिमा उपासना प्रारम्भ हुई। निष्कर्षतः प्रतीक-उपासना के केन्द्रों की निर्माण तिथि ईसा से प्रथम शती पूर्व है। भले ही उनका विस्तार और पुनर्निर्माण बाद में हुआ है।
बुन्देलखण्ड में भी सूर्य उपासना तथा मंदिरों की यह दोनों कोटियां मिलती है। यह क्षेत्र मुख्यतः वनाच्छादित था यहॉं अनेक ऋषियों और मुनियों के आश्रम थे। वेद और पुराणों की रचना यहीं कालपी में महामुनि वेदव्यास ने की थी। वन क्षेत्रों में पूजित लोक देवताओं की भाँति सूर्य की प्रतीक उपासना चबूतरों पर चक्र या कमल प्रतिष्ठित करके की जाती होगी। कालान्तर में नागर सभ्यता के विकास के बाद वहॉं मन्दिरों का निर्माण हुआ होगा।
प्रतीक पूजा की दृष्टि से बुन्देलखण्ड में दो मन्दिर उल्लेखनीय है- प्रथम उनाव (जिला दतिया) तथा द्वितीय गोरा (जिला टीकमगढ़) में। इन दोनों में सूर्य के प्रतीक चक्र देवरुप में प्रतिष्ठित हैं। इन दोनों के गर्भगृह भी चारों ओर से खुले हैं, जिससे हमारा उक्त अनुमान सही ठहरता है।
- उनाव का सूर्य मंदिर
- गोरा (टीकमगढ़) का सूर्य मंदिर
- पुराणकालीन सूर्य मंदिर कालपी (उत्तरप्रदेशीय बुन्देलखण्ड)
- महोबा के निकट रहिलिया (राहिल्यनगर) सूर्य मंदिर
- ललितपुर जिले के महरौनी विकासखण्ड में ‘बुधनीग्राम’ महरौनी मड़ावरा मार्ग सूर्य मंदिर
- झॉंसी जिले में, झॉंसी खजुराहो मार्ग पर बरवासागर ‘जरायमठ’ सूर्य मंदिर
- टीकमगढ़ जिले के ग्राम मड़खेरा सूर्य मंदिर
- टीकमगढ़ जिले में एक स्थान है ऊमरी का सूर्य मंदिर
- सागर जिले में रेहली का सूर्य मंदिर
- छतरपुर जिले के चार सूर्य मन्दिर
- छतरपुर जिले के मऊ-सहानियां का सूर्य मंदिर
- भिण्ड जिले के भरौली ग्राम का सूर्य मंदिर
- शिवपुरी जिले के टोंगरा ग्राम का सूर्य मंदिर
- ग्वालियर जिले के आलमपुर में मध्यकालीन सूर्य मन्दिर
सन्दर्भ
- ऋग्वेद 8/47/4
- अथर्ववेद 9/8/22
- मदनमोहन वैद्य- हनुमत साधना-सूर्यअंक, संपादक- पृ. 40
- डॉ. सुरेश प्रत राय- सूर्य पूजा की प्रभात कल्याण सूर्य अंक पृष्ठ 410
- प्रो. कृष्णदत्त बाजपेयी- भारतीय पुरातत्व में सूर्य (कल्याण, सूर्यअंक पृष्ठ 423)
- (राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त)- भारत भारती पृष्ठ 31 40 वां सस्करण
- आचार्य बल्देव उपाध्याय, सूर्य पूजा की परंपरा और प्रतिमाएँ कल्याण सूर्य अंक पृष्ठ 414,
- हरिमोहनलाल श्रीवास्तव श्रीबालाजी देवों में देव पृष्ठ 29.
- दतिया जिला गजेटियर, पृष्ठ- 310,
- डॉ. काशीप्रसाद त्रिपाठी बुन्देलखण्ड और सूर्योपासना (उड़ान स्मारिका पृष्ठ 26)
- पूर्व की उपस्थिति, सुन्दर तट पर लोग दिखेंगे। दोपहर में, समय के प्यार में, और दोपहर में, यह हमेशा यहाँ होता है।
- जानकीनाथ शर्मा- भारत के अत्यंत प्रसिद्ध तीन प्राचीन सूर्य मंदिर कल्याण सूर्यअंक पृ.427
- अयोध्या प्रसाद ‘कुमुद’ कालप्रियनाथ सूर्य मंदिर की खोज यात्रा (सप्तदल पृ. 144)
- जिला जालौन गजेटियर (1921) परिशिष्ट पृष्ठ 34
- डॉ. वी.वी. (मिराशी प्राच्यविद्या पाठ्यपुस्तक भाग-4 पृष्ठ 77-78)
- वासुदेव चौरसिया चन्देलकालीन महोबा और जनपद हमीरपुर के पुरावशेष-पृष्ठ 49)
- डॉ. वीना विद्यार्थी एवं डा. सुरेन्द्र सिंह चौहान-विरासत
- डॉ. अंबिकाप्रसाद सिंह- पुरातात्विक सर्वेक्षण रिपोर्ट (महरौनी, ललितपुर) पृष्ठ 20)
- डॉ. वीना विद्यार्थी एवं डा. सुरेन्द्र सिंह चौहान-विरासत
- कृष्णानन्द गुप्त- मड़खेरा का सूर्यमंदिर (टीकमगढ़ दर्शन-मंगलप्रभात, पृष्ठ 62)
- जी.एल. रायकवार रहली का सूर्यमन्दिर पृष्ठ 14-15
- डॉ. राजकुमार शर्मा मध्यप्रदेश के पुरातत्व का संदर्भ ग्रंथ पृष्ठ357
- श्री सावलिया – वैदिक सूर्य का महत्व और मंदिर तथा कल्याण सूर्य अंक पृष्ठ 417
- श्री सावलिया बिहारीलाल जी वर्मा वैदिक सूर्य का महत्व और मंदिर बुन्देलखण्ड और
- डॉ. के.पी. त्रिपाठी सूर्योपासना (उड़ान, पृष्ठ 26)
- डॉ. राजकुमार शर्मा म.प्र. के पुरातत्व का संदर्भ ग्रंथ पृष्ठ 358
- डॉ. अंबिकाप्रसाद सिंह- पुरातात्विक सर्वेक्षण रिपोर्ट (महरौनी) तथा (जखौरा) (पृष्ठ क्रमशः 22, 31, 32)
- रमाशंकर- बुन्देलखण्ड की कतिपय सूर्य प्रतिमायें (दी ग्लोरी दैट वाज बुन्देलखण्ड पृष्ठ 387)
- डॉ. राजकुमार शमा मध्यप्रदेश के पुरातत्व का संदर्भ ग्रंथ पृष्ठ 357 एवं 358
- अयोध्या प्रसाद गुप्त, ‘कुमुद ‘सूर्यपूजा’ बुन्देलखण्ड का लोक जीवन पृष्ठ 64