
रतनगढ़ माता
October 8, 2024
उनाव बालाजी सूर्य आराधना का केन्द्र
October 8, 2024दतिया से चालीस मील उत्तर में सेंवढ़ा बुन्देलखंड का प्रमुख एवं ऐतिहासिक नगर है। सेवढ़ा विन्ध्याटवी के छोर पर सिन्ध नदी के तट पर बसा हैं। सिंध नदी द्वारा यहाँ निर्मित अत्यन्त मनोरम जलप्रपात है, जिसे सनकुँआ कहते हैं। वस्तुतः 25-30 फीट की ऊँचाई से गिरने वाली विपुल जल राशि ने धनुषाकार रूप धारण कर झील बनायी, उसी का नाम ‘सनत्कूप’ पड़ा जो बिगड़कर सनकुँआ हो गया। पौराणिक उल्लेख के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार ने इसी स्थान पर तपस्या की थी, इसी से सागर तुल्य इस अथाह झील का नाम’ सनतकूप प्रसिद्ध हुआ। प्रपात के नीचे की चट्टानों को काट कर गुफाएँ बनायी गई है। इन्ही के ऊपर से नदी धार गिरती है जो गुफाओं के द्वारों में किबाड़ों का काम देती है। ग्रीष्म ऋतु में ये कन्दराएँ बहुत ठंडी और सुखद रहती हैं।
नदी के इस पार कगार के निकट 53 फीट काली का मन्दिर है बरसात में नदी जब चढ़ती है, तब मन्दिर का कलश खतरे का बिन्दु माना जाता है। दूसरी ओर प्रपात से सटा हुआ शिवजी का मंदिर और गोमुख हैं। यहाँ गोमुख से शिवजी पर निरन्तर पानी की धार टूटती है आगे दालान और पक्के घाट हैं। इनका निर्माण दिल्ली के मारवाड़ी सेठ मानिकचंद के पौत्र शिवलाल ने कराया था। कहते है कि ये मारवाड़ी सेठ दिल्ली के अंतिम बादशाह बहादुर शाह (जफर) के निकट सम्पर्क में रहते थे। सन् 1857 में दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाने पर वे फिरंगियों से बचकर वहाँ गये।
सेवढ़ा की जलवायु स्वास्थ्य के लिए अच्छी है। गर्मियों में भी वहाँ पर रात ठंडी रहती है। दतिया के राजा गर्मियों में अधिक वहीं रहते थे। स्व. महाराज गोविन्द सिंह ने प्रपात के निकट सिंन्ध नदी पर 40 द्वारों का लम्बा पुल, का निर्माण कराया था। जिसका उद्घाटन ‘जय जंगलधर बादशाह’ का आदर्श सार्थक करने वाले बीकानेर के राजा गंगासिंह ने किया था। यातायात की दृष्टि से 1940 में बनकर तैयार हुआ था।सेवढ़ा में पग-पग पर वैभव शाली भवनों के अवशेष, मंदिर, गुफाएँ और मठ हैं। शुक्राचार्य का स्थान स्वामी शंकराचार्य के शिष्यों के मठ और सरस्वती मंदिर वहाँ की दार्शनिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हैं। मुस्लिम संतो में बाबा बरखुदार का टीला, जिंदपोर की करार तथा ख्वाजा साहब के स्थान के अतिरिक्त वहाँ पुरा स्थापत्य सम्बंधी एवं ऐतिहासिक स्थान हैं। सरस्वती मंदिर कदाचित बुदेलखण्ड में सर्वप्रथम सेंवढ़ा में निर्मित हुआ था।