दतिया से चालीस मील उत्तर में सेंवढ़ा बुन्देलखंड का प्रमुख एवं ऐतिहासिक नगर है। सेवढ़ा विन्ध्याटवी के छोर पर सिन्ध नदी के तट पर बसा हैं। सिंध नदी द्वारा यहाँ निर्मित अत्यन्त मनोरम जलप्रपात है, जिसे सनकुँआ कहते हैं। वस्तुतः 25-30 फीट की ऊँचाई से गिरने वाली विपुल जल राशि ने धनुषाकार रूप धारण कर झील बनायी, उसी का नाम ‘सनत्कूप’ पड़ा जो बिगड़कर सनकुँआ हो गया। पौराणिक उल्लेख के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार ने इसी स्थान पर तपस्या की थी, इसी से सागर तुल्य इस अथाह झील का नाम’ सनतकूप प्रसिद्ध हुआ। प्रपात के नीचे की चट्टानों को काट कर गुफाएँ बनायी गई है। इन्ही के ऊपर से नदी धार गिरती है जो गुफाओं के द्वारों में किबाड़ों का काम देती है। ग्रीष्म ऋतु में ये कन्दराएँ बहुत ठंडी और सुखद रहती हैं।
नदी के इस पार कगार के निकट 53 फीट काली का मन्दिर है बरसात में नदी जब चढ़ती है, तब मन्दिर का कलश खतरे का बिन्दु माना जाता है। दूसरी ओर प्रपात से सटा हुआ शिवजी का मंदिर और गोमुख हैं। यहाँ गोमुख से शिवजी पर निरन्तर पानी की धार टूटती है आगे दालान और पक्के घाट हैं। इनका निर्माण दिल्ली के मारवाड़ी सेठ मानिकचंद के पौत्र शिवलाल ने कराया था। कहते है कि ये मारवाड़ी सेठ दिल्ली के अंतिम बादशाह बहादुर शाह (जफर) के निकट सम्पर्क में रहते थे। सन् 1857 में दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाने पर वे फिरंगियों से बचकर वहाँ गये।
सेवढ़ा की जलवायु स्वास्थ्य के लिए अच्छी है। गर्मियों में भी वहाँ पर रात ठंडी रहती है। दतिया के राजा गर्मियों में अधिक वहीं रहते थे। स्व. महाराज गोविन्द सिंह ने प्रपात के निकट सिंन्ध नदी पर 40 द्वारों का लम्बा पुल, का निर्माण कराया था। जिसका उद्घाटन ‘जय जंगलधर बादशाह’ का आदर्श सार्थक करने वाले बीकानेर के राजा गंगासिंह ने किया था। यातायात की दृष्टि से 1940 में बनकर तैयार हुआ था।सेवढ़ा में पग-पग पर वैभव शाली भवनों के अवशेष, मंदिर, गुफाएँ और मठ हैं। शुक्राचार्य का स्थान स्वामी शंकराचार्य के शिष्यों के मठ और सरस्वती मंदिर वहाँ की दार्शनिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हैं। मुस्लिम संतो में बाबा बरखुदार का टीला, जिंदपोर की करार तथा ख्वाजा साहब के स्थान के अतिरिक्त वहाँ पुरा स्थापत्य सम्बंधी एवं ऐतिहासिक स्थान हैं। सरस्वती मंदिर कदाचित बुदेलखण्ड में सर्वप्रथम सेंवढ़ा में निर्मित हुआ था।
आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे।
बुन्देली धरती के सपूत डॉ वीरेन्द्र कुमार निर्झर जी मूलतः महोबा के निवासी हैं। आपने बुन्देली कहावतों का भाषा वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अनुशीलन कर मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के सेवासदन महाविद्यालय बुरहानपुर मप्र में विभागाध्यक्ष के रुप में पदस्थ रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत, हिन्दी मंच,मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला बुरहानपुर इकाई जैसी अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। आपके नवगीत संग्रह -ओठों पर लगे पहले, सपने हाशियों पर,विप्लव के पल -काव्यसंग्रह, संघर्षों की धूप,ठमक रही चौपाल -दोहा संग्रह, वार्ता के वातायन वार्ता संकलन सहित अनेक पुस्तकों का सम्पादन कार्य किया है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से कहानी, कविता,रूपक, वार्ताएं प्रसारित हुई। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक लेख प्रकाशित हैं। अनेक मंचों से, संस्थाओं से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में डॉ जाकिर हुसैन ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट बुरहानपुर में निदेशक के रूप में सेवायें दे रहे हैं।
डॉ. उषा मिश्र
सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन।
नाम – डा. उषा मिश्रा पिता – डा.आर.सी अवस्थी पति – स्व. अशोक मिश्रा वर्तमान / स्थाई पता – 21, कैंट, कैंट पोस्ट ऑफिस के सामने, माल रोड, सागर, मध्य प्रदेश मो.न. – 9827368244 ई मेल – usha.mishra.1953@gmail.com व्यवसाय – सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ( केमिस्ट्री और टॉक्सिकोलॉजी ) गृह विभाग, मध्यप्रदेश शासन। शैक्षणिक योग्यता – एम. एससी , पीएच. डी. शासकीय सेवा में रहते हुए राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में शोध पत्र की प्रस्तुति , मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर, गृह विभाग द्वारा आयोजित वर्क शॉप, सेमिनार और गोष्ठीयों में सार्थक उपस्थिति , पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज सागर में आई. पी. एस., डी. एस. पी. एवं अन्य प्रशिक्षणु को विषय सम्बन्धी व्याख्यान दिए।
सेवा निवृति उपरांत कविता एवं लेखन कार्य में उन्मुख, जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित। भारतीय शिक्षा मंडल महाकौशल प्रान्त से जुड़कर यथा संभव सामजिक चेतना जागरण कार्य हेतु प्रयास रत।