
सुप्रसिद्ध प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल सनकुआँ
October 8, 2024
छत्री समूह कर्ण सागर दतिया
October 8, 2024उनाव बालाजी मंदिर पहूज (पुष्पावती) के तट पर बना है। एक विशाल मंदिर भगवान भास्कर के रथाकार का है। मंदिर के प्रांगण में प्रवेश के लिए लगभग साठ फुट की ऊँचाई तक पाषाण खण्ड रखकर सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। मंदिर के भीतरी भागों में चारों ओर दालानें हैं। मध्य में प्रशस्त प्रांगण है। उत्तर की ओर मुख्य तोरण द्वार है। द्वार के ऊपरी भाग एवं कक्षों के भित्तियों पर पीत-हरित एवं रक्तिम वर्ण के चित्र चित्रित हैं, जिनमें गज, मयूर, अश्व, रथादि तथा श्रेणीबद्ध अक्षौहिणी सेना के कतिपय अंश चित्रित थे, जो अब धूमिल हो गये हैं। बुन्देला नरेशों द्वारा परिश्रान्त तीर्थ यात्रियों की सुख-सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए मंदिर के चुतुर्दिक विश्रान्तें हैं।
मंदिर की विस्तार योजना झाँसी के पेशवा के सर्वेक्षण द्वारा तैयार की गई थी, परन्तु दतिया राज्य के बुन्देला शासक महाराज इन्द्रजीत (1736-62 ई.) के हस्तक्षेप करने पर निर्माण कार्य अधूरा ही रहगया। कुछ काल पश्चात् सन् 1844 ई. में सिंधिया सरकार के मन्त्री मामा साहेब जादब ने मंदिर का कुछ भाग निर्माण कराया था। बाद में दतिया के महाराज भवानी सिंह (1857-1907) के शासनकाल में मदिर एवं उसके साथ बाजार का भी निर्माण कराया गया था। बुन्देला नरेशों की स्थापत्य कला, कीर्ति एवं संस्कृक्ति का वह उत्कृष्ट नमूना है। मन्दिर की विशेषता यह है कि यहाँ पर सूर्य की प्रतिमा के स्थान पर “सूर्य यंत्र” स्थापित है। इस मंदिर के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि यहां स्थापित यंत्र प्रारम्भ में बरमजू को प्राप्त हुआ था।
वह पहूज (पुष्पावती) के किनारे पर अपने पशु चरा रहा था, उसकी गाय असमय में ही दुग्ध धारा प्रवाहित कर रही है। बरमजू ने जब यह देखा तो आश्चर्यचकित होकर नेत्र मूंदकर प्रार्थना की कि यदि यहाँ कोई देव हो तो प्रकट होकर दर्शन दें। भगवान भास्कर ने “बरमजू” की प्रार्थना स्वीकार की और प्रकट हुए। दर्शन लाभ प्राप्तकर और भगवान भास्कर की आज्ञानुसार नदी के किनारे इस सूर्य-यंत्र की स्थापना करा दी। मन्दिर की आय में से उक्त बरमजू के वंशजों को आज भी एक भाग प्राप्त होता हैं। उनाव के सूर्य मंदिर में जिस पत्थर का उपयोग किया गया है वह केवलारी के मंदिरों के अवशेष हैं। धार्मिक भावना के अनुसार अंशुमाली बालाजी भगवान भास्कर पर अंजलि अर्पण करने से समस्त चर्मरोगों का नाश हो जाता है। ऐसा देखने में आता है कि यहाँ का जलवायु तथा नदी का जल चर्म रोगों को अधिक लाभ पहुँचाता है छाजन पीड़ित व्यक्ति “छाज-छजानिया” चढ़ाते है, जिससे छाजन ठीक हो जाता है।
पूर्व दिशा में पुष्पावती (पहूज) की अविरल वारिधार-प्रवाहित है। सूर्य की स्वर्णिम रश्मियाँ ब्रह्मण्यदेव बालाजी के सम्मुख जब प्रकट होती है तो ऐसा प्रतीत होता है मानों मूर्ति से ही किरणें प्रस्फुटित होकर स्नानार्थियों के नश्वर शरीर को दिव्य ज्योति प्रदान कर रही हों। सूर्योदय की अनुभूति की अभिलाषा से अनेक स्त्री-पुरुष, बाल- वृद्ध ब्रह्म मुहूर्त में ही यहाँ उपस्थित होते हैं। यहीं से स्नानकर आर्द्र वस्त्र धारण किये ही बालाजी पर जल चढ़ाने हेतु मंदिर में जाते हैं। विशेषकर सूर्यवार को वहाँ पर मेला-सा लगा रहता है। उनाव बालाजी मंदिर दतिया एवं झांसी से 18 कि. मी. दूर है।