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September 16, 2024
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September 16, 2024वनस्पति का अर्थ बिना बोये प्राकृतिक रूप से पैदा होने बाले पेड़ पौधे, घास और झाड़ियों से होता है। वही प्राकृतिक वनस्पति जब विस्तृत रूप धारण कर लेती है तो इसे ‘वन’ कहा जाने लगता है। जनपद ललितपुर का दक्षिणी भाग पठारी होने के कारण यहाँ कँटीले वृक्ष अधिक पाये जाते है। इन जंगलों में कई तरह के पेड़-पौधे एक साथ पाये जाते हैं। इनमें कुछ ऐसे है जो हमेशा हरे रहते हैं तथा कुछ बसंत ऋतु में अपने पत्ते गिरा देते हैं इसलिए उनको पतझड़ वाले मिश्रित वन कहते है। जनपद ललितपुर में कुल वन क्षेत्र 72233 हेक्टेयर है।
जनपद में जंगलों में नीचे लिखे पेड़ पाये जाते हैः-
- फल देने वाले – आम, जामुन, महुआ, अचार, केला, तेंदू, खिन्नी, आंवला आदि।
- इमारती लकड़ी देने वाले- सागौन, शीशम, महुआ, सरई, नीम, पीपल, कहवा (अर्जुन) गुरार, करधई, शाल, तेंदू, शिरोष, बीज, शलई, करीता, रन्जा, बबूल आदि।
- जलाऊ लकड़ी देने वाले – कई प्रकार के छोटे-छोटे झाड़ों और पेडों से जलाऊ लकड़ी मिलती है, इसको सतकठा या सतरूखा कहते है।
- उद्योगों के काम आने वाले- खैर, पलाश (छिवला) बाँस, तेंदू, ताई, खजूर, चन्दन, वहेड़ा, हर्र, साज, झीगन का गोंद, करीता गोंद , छवा का गोंद करधई सागौन बबूल आदि।
- ओषधि देने वाले – आंवला, हर्र, वहेड़ा अर्जुन, चन्दन, शंखपुष्पी, शतावर, दशमूल, चित्रक, भृंगराज, सफेद मूसली, नागर मुस्तक, बेलफल, बेरफल, सीताफल, तेंदूफल, अचार आदि।
वन उपज
इस समय जिले के वनों से सागौन, शीशम, की इमारती लकड़ी एवं बाँस, तेदू, खैर महुआ, करधई, पीपल की लकड़ी प्राप्त की जाती हैं। प्रमुख घासों में फुली, रूआ, दुबा, काँस, गुनर, मुसयाल आदि शामिल है। घास का उपयोग पशुओं को चराने, घर बनाने तथा रस्सी बनाने आदि के काम में होता है। वनों से कई प्रकार के कन्द मूल, रस, लाख, गोंद, एवं औषधियाँ प्राप्त की जाती है। तेंदू के पत्ते से बीड़ियाँ बनाई जाती है, वनों से जलाऊ लकड़ी प्राप्त होती हैं।
सागौन, शीशम, गुरार, की लकड़ी मकान तथा कुर्सी-मेज, सोफा, पलंग आदि फर्नीचर बनाने के काम में आती है। बबूल की लकड़ी से हमारे किसान बैलगाडियों के पहिए, हल, वक्सर आदि बनाते हैं। जनपद के विकासखण्ड वार में चन्दन के पेड़ों का एक विशाल वन है जिसे ‘चन्दन वन कहते हैं, जो कि वर्षा ऋतु में बड़ा ही मनमोहक लगता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि वनों से हमें कई प्रकार के लाभ होते हैं। वन भूमि कटाव को भी रोकते है। वनों से वर्तमान में बड़ी मा़त्रा में प्राप्त होने वाली जड़ी, बूटियों को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक जड़ी बूटी संग्रह एवं सरक्षण हेतु एक राजकीय केन्द्र ललितपुर में विकसित किया थे। अभी तक स्थानीय जड़ी बूटी विक्रेता इनका व्यापार इस क्षेत्र से करते थे।
पशुधन
पशुओं का हमारे लिए अधिक महत्व है, खेतों में सहायता देने के अलावा इनसे हमें दूध, माँस, खाद तथा हड्डी और चमड़ा प्राप्त होता है। पशुओं को दो भागों में बाँटा जा सकता हैं-
- जंगली पशु
- पालतू पशु
जंगली पशु – जंगली पशुओं की प्रकृति हिंसक होती है तथा इनको घर में पाला नहीं जा सकता। ये मांसाहारी तथा शाकाहारी होते हैं। मांसाहारी मांस खाने वाले होते हैं, जैसे- शेर, भेडि़या, तेंदुआ, चीता, सियार आदि। शेर, तेंदुआ, चीता, हिरन, भालू, जंगली सूअर, नील गाय, जनपद में धोरी सागर के जंगल में आज भी पाये जाते हैं। पहले इस जनपद में इन पशुओं की अधिकता थी, किन्तु जंगल कटने के साथ इनकी संख्या भी कम होती गई। अब सरकार इनकी रक्षा के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील है।
पालतू पशु – पालतू पशुओं में गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़, कुत्ता, घोड़े, गधे आदि हैं। गाय और भैंस के दूध से दही, मक्खन, घी, मट्ठा आदि बनाया जाता है। पशुओं के गोबर को खाद बनाने तथा जलाने तथा गोबर गैस एवं बायो-गैस द्वारा भोजन पकाने के काम में लेते हैं। गाय के बछडे़ बड़े होकर बैल का काम करते हैं। यहाँ के लोगों का मुख्य धन्धा खेती होने के कारण बैलों का महत्व बहुत अधिक है। वर्तमान में जनपद में अच्छी नस्ल की गायों और भैसों को पालकर दूध का धन्धा भी व्यवसाय के रूप में होने लगा है।