अशोक का शिलालेख, गुजर्रा
October 8, 2024झील में तैरता हुआ महल
October 8, 2024महाराज दलपत राव ने दतिया में “प्रतापगढ़ दुर्ग” नामक एक विशाल किला बनवाया, जो निवास और युद्ध दोनों के लिए उपयोगी था। यह दुर्ग वर्तमान में दतिया नगर के हृदय स्थल ‘किला चौक’ पर स्थित है। यह दुर्ग समतल भूमि पर बना है। किले के परकोटे के चारों ओर गहरी खाई खुदी हुई थी, जिसमें पानी भरा रहता था। किले का कोट या ‘रर’ ऊँचाई में 40 फुट और लम्बाई में एक मील हैं। रर में ऊँचाई पर तीरकश बने हुए हैं जिनसे हो कर युद्ध के समय में तीर या गोली चलाई जाती थी। हाथी पर खड़े होकर भी ऊँचाई तक न पहुँचने वाले किले के प्रवेश द्वार में काफी मोटे और मजबूत लकड़ी के किबाड़ लगे हुए हैं, जिनमें नीचे से ऊपर तक लगभग 1-1 फुट की दूरी पर मोटे तथा नुकीले हाथी चिक्कार लोहे के कीले लगे हुए हैं।
किले के प्रवेश द्वार से 20-30 गज चलते ही वैसा ही एक और द्वार घुमावदार बना हुआ है। इन दोनों द्वारों के बीच मुख्य द्वार की ओर सामना किये हुए ऊँचे चबूतरे पर लगभग 8 फुट नाल और 2 फुट व्यास की एक विशाल तोप रखी हुई है। दतिया नरेश महाराज भवानी सिंह के शासन काल के इधर दुर्ग के प्रवेश द्वार के ऊपर अंग्रेजी में “Justice is the gem of crown” शब्द लिखे गये थे, वे कुछ और ही शोभा बना देते थे।
किले के अन्दर जो शस्त्रागार (सिलाखाना) है उसमें प्राचीन और आधुनिक ढंग के भाँति-भाँति के शस्त्र संग्रहीत हैं। प्राचीनकाल में युद्धों में प्रयोग होने वाली सभी चीजें यहाँ सुलभ थी। कड़ाबीन बन्दूक, साँग और साँगी एवं तमंचे, बन्दूक और तलवारों के भाँति-भाँति के नमूने संग्रह किये गये हैं। काशी विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने इस संग्रहालय की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। यहाँ किसी समय में बिहारी सतसई के प्रत्येक दोहे पर बनाए चित्र सतसई के दोहों की संख्या अर्थात 700 के ऊपर रहे होगे। जिनमें लगभग 200 चित्र और मतिराम के नायिका भेद के सवैयों के अनेक चित्र महाराजा के निजी चित्र संग्रह में पाये जाते थे।
श्रीविजय गोविन्द जी का विशाल मन्दिर रनिवास के पास ही है। ऊँची-ऊँची दीवारों पर जो चित्र टंगे हैं। उनमें से कुछ चित्र प्राचीन शैली के दृष्टिगोचर होते हैं। मन्दिर और रनिवास के बीच में एक विशाल भवन है जिसे दरबार हॉल कहा जाता है। ‘नई जगह’ के नाम से प्रसिद्ध महाराज का निवास स्थान भी इसी से सटा हुआ है। अमूल्य फर्श और कालीन के साथ-साथ सजावट की कीमती वस्तुओं से सुसज्जित दरबार हाल में यहाँ-वहाँ ऊँची-सी मेज पर और कहीं-कहीं फर्श पर शेर, चीते जैसे विभिन्न प्रकार के हिंसक पशु मसाले भरे हुए सजीव से रक्खे हैं।
ऊपर छत पर बड़े-बड़े झाड़ और फानूस टंगे हुए हैं। दीवारों पर चित्र लटक रहे हैं। चित्रों के बीच में एक दीवार पर गेड़ा हाथी का तथा उसके ठीक विपरीत वाली दीवार पर हप्पी चिड़िया (हिप्पो पटोमस) का सिर टंगा हुआ हैं। नरेश गोविन्द सिंह जू देव ने अपनी अफ्रीका यात्रा में हप्पों चिड़िया का शिकार किया था। अधिकांश बड़े कमरों की बिछायतें शेर के चर्म से आच्छादित हैं, जो सुन्दर दिखाई देती है। यहाँ शेर के नाखूनों से स्वर्ण मण्डित एक हाथी की झूल भी बड़ी सुन्दर है। धार्मिक उत्सव एवं सामजिक अवसरों पर आवागमन बढ़ने से किले की शोभा भी बढ़ जाती है। साँझी और दशहरा के अवसर पर यहाँ आवागमन बढ़ जाता है।