विश्व की सबसे प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा को जिन ऋषि, महा आचार्य व असंख्य मेघावान महापुरुषों ने अपनी साधना, तप, ध्यान व उससे अर्जित ज्ञान से पल्लवित किया, वह अद्वितीय है। सनातन की यह शाश्वत परंपरा जिसका न कोई आदि है और न अन्त तथा इसमें शामिल ज्ञान की अविचल धारा वे उत्तरोत्तर संपूर्ण विश्व को नयी दिशाएँ प्रदान की हैं। जैसा कि विदित है ज्ञान को भारत में प्राचीन समय से ही सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया गया है, प्राचीन काल से लेकर आज के आधुनिक समय तक ऐसे असंख्य क्षेत्र हैं, जिनमें इसी भारतीय ज्ञान परंपरा से कई नवीन प्रतिमान स्थापित हुए हैं। भारत के विषय में लिखित साक्ष्य ऋग्वैदिक काल से मिलता है और ऋग्वेद इस संदर्भ में प्रथम ग्रंथ है।

ऋग्वेद विश्व की प्राचीनतम पुस्तक है, जो प्राचीन भारतीय आर्यों की राजनीतिक व्यवस्था के साथ ही उनके ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, धर्म, कला एवं साहित्यिक उपलब्धियों का एकमात्र महत्वपूर्ण स्रोत है। भौतिक जगत को समझने की प्रथा सर्वप्रथम प्राचीन आर्यों ने ही आरंभ की थी। वैदिक काल के ऋषियों ने अनेक शास्त्रों, विज्ञानों एवं वेदांगों की नींव डाली थी। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अपने समय से बहुत आगे की कल्पनाओं और विचारों को साकार किया है। उन्होंने हजारों साल पहले ही प्रकृति से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किये और युक्तियाँ बतायी। उनके इसी विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।

हमारे प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित वैज्ञानिक सूत्र बहुत ही सहज और सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किये गये हैं। उस काल में जहाँ जन सामान्य के जीवन को बेहतर बनाने के लिए शास्त्र लिखे गये तो विज्ञान और गणित के गुह्यतम रहस्यों के जवाब देने के लिए भी शास्त्र लिखे गये। आधुनिक भारतीय जनसमाज के मन मस्तिष्क में कहीं ना कहीं यह बात मौजूद है कि बहुतायत में वैज्ञानिक आविष्कार पश्चिमी देशों की देन है उनके लिए यह जानना आवश्यक है कि पश्चिम के अधिकांश वैज्ञानिकों तथा आविष्कारकों ने भारतीय वैदिक विज्ञान की महत्ता को स्वीकार किया है।