उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में बुन्देलखण्ड के यशस्वी रचनाकारों ने अपनी लेखनी से यश और शौर्य की इस धरा के रज-कणों में व्याप्त कथाओं को उपन्यास के रूप में प्रभावित किया। बाबू वृन्दावन लाल वर्मा का नाम इसमें अग्रणीय हैं।